__संगति का असर__

बारिश की बूंदें ज्यों आसमान से टप-टप टप-टप गिरती।

तेज कभी धीमे से गिरती कभी है बिजली कड़कती।


बूंदें जब गिरती सागर में

तब बंद सीप में हो जाएं,

सुंदर धवल बनें मोती वह

बन माला नारी को सजाए।

बारिश की बूंदें ज्यों आसमान से टप-टप टप-टप गिरती।

तेज कभी धीमे से गिरती कभी है बिजली कड़कती।


वहीं बूंद गिरती नदिया में

नदिया में घुल-मिल जाए,

रंग नहीं है अलग बूंद का

हर प्यासे की प्यास बुझाए।

बारिश की बूंदें ज्यों आसमान से टप-टप टप-टप गिरती।

तेज कभी धीमे से गिरती कभी है बिजली कड़कती।


बूंदें वही गिरती खेतों में

फसलें हरी-भरी हो जाएं,

धन-धान्य का हो उत्पादन

जगती में खुशियां फैलाए।

बारिश की बूंदें ज्यों आसमान से टप-टप टप-टप गिरती।

तेज कभी धीमे से गिरती कभी है बिजली कड़कती।


स्वच्छ बूंद है वही गिरे गंदे नाले में

गलत संगति में अपना बजूद मिटाए,

गंदी संगति में गिर पड़कर

क्यों अपना सर्वस्व लुटाए?

बारिश की बूंदें ज्यों आसमान से टप-टप टप-टप गिरती,

तेज कभी धीमे से गिरती कभी है बिजली कड़कती।


जैसी संगत पाएं वैसी रंगत 

बूंद स्वरूप दे “अलका” समझाए,

अच्छी संगति करके मानव प्यारे

इस जग में सुंदर नाम कमाएं।

बारिश की बूंदें ज्यों आसमान से टप-टप टप-टप गिरती,

तेज कभी धीमे से गिरती कभी है बिजली कड़कती।


डॉ. अलका गुप्ता ‘प्रियदर्शिनी’