क्या कहें

एक दिन सलीम भाई गर्मी के दिन में शेरवानी पहनकर अपने दोस्तों के बीच पहुँचे। उन्हें देखते ही दोस्तों की हँसी छूट गई। कहा – क्या मियाँ! कोई तो भी गर्मी के दिनों में शेरवानी पहनते क्या? अजीब नमूने हैं। एक तरफ इतनी गर्मी है दूसरी तरफ हवा का नामोंनिशान नहीं। ऊपर से तुम्हारा तमाशा अलग से। इन्हीं हरकतों के चलते तुमको कोई लड़की नहीं दे रहा है। बदलों में मियाँ बदलो! और कितने दिन ये बचकानी हरकत करेंगे? कुछ तो उम्र का लिहाज करो। कल के छोकरे भी तुम्हारे से ज्यादा अक्लमंद हैं।

सलीम भाई की हालत काटो तो खून नहीं जैसी हो गयी थी। बेइज्जती का घूंट पीकर रह गए। अपने गुस्से को जैसे-तैसे दबाया। फिर कहा – हाँ मियाँ! मेरी हरकतें तुम्हें हँसी दिलाने वाली हैं। एक तरफ तुम लोग फेसबुक, वाट्सप पर वतन स्मार्ट बनता जा रहा है, नई-नई बुलंदियों को छूता जा रहा है जैसी लंबी-लंबी बातें फेंकते हो। दूसरी तरफ देश के प्रधान और उनके चमचे बड़ी-बड़ी मुंडियों वाला इश्तेहार में अस्सी करोड़ लोगों को फ्री में अनाज देने की बात करते हैं। 

अजब उलटबासी हैं यहाँ! इंसानी बदन मांस और हड्डियों का बना है। लोहे का तो है नहीं! बीमार पड़े तो इंसान अस्पताल जाना चाहता है। हमारे यहाँ अस्पताल से ज्यादा शराबखाने हैं। इंसान की मरम्मत करने से ज्यादा बिगाड़ने के ठिकाने हैं। दो-दो कदम पर मंदिर-मस्जिद मिलेंगे, पढ़ने के लिए स्कूल हरगिज नहीं। अंधविश्वास के ठिकाने जब तर्क-वितर्क पर हावी हो जाते हैं, तब इंसान अच्छे-बुरे की पहचान नहीं कर पाता। कोई एलोपैथी कहता है तो एलोपैथी के पीछे, कोई आयुर्वेद कहता है तो आयुर्वेद के पीछे दौड़ने लगता है। कौआ कान ले गया की तर्ज पर कौए के पीछे दौड़ना शुरु कर देते हैं। 

किसी के पास अपने कान छूकर देखने की सोच नहीं है। यहाँ हाथ में स्मार्टफोन, चढ़ने के लिए मेट्रो, पीने के लिए शराब मिल जाएँ तो  उसे आत्मनिर्भर कहते हैं। 

कोई लड़की साइकिल पर अपने अब्बा को ले जाती है तो उसे आत्मनिर्भर कहते हुए देश का बड़ा तमगा दे दिया जाता है। असली हीरो को लात मारी जाती है और नकली हीरो को छाती से लगा लिया जाता है। जहाँ सांस लेने को एहसान माना जाता हो, वहाँ  जीना भी किसी अजूबे से कम नहीं। मानता हूँ कि मैंने ऊपर शेरवानी पहनी है, लेकिन मुझे अंदर से कोई परेशानी नहीं है। कम से कम उन लोगों से तो खुशनसीब हूँ जो न दिखाई देने वाली ढोंगी शेरवानी पहने हैं और अंदर से असलियत में परेशान हैं।

सच है, यहाँ हर कोई ऊपर शेरवानी पहना है, और अंदर से परेशानी से दो-चार हो रहा है। अंतर केवल इतना है कि किसी को यह शेरवानी दिखायी देती है, तो किसी-किसी को यह नहीं दिखायी देती। सबकी परेशानियों के निशान अलग-अलग हैं। कुछ दिखाने में फेल हो जाते हैं, तो कुछ छिपाने में सफल।   

डॉ. सुरेश कुमार मिश्रा ‘उरतृप्त’, मो. नं. 73 8657 8657