दो राहे में फंसी जनता

"अगर इस धरती पर अभी भी सच्चाई जीवित है तो सिर्फ नेताओं की वजह से ही।"

"इतनी बड़ी बात कह  दी तुमने।  समाज में सच्चाई की समाधि बनाने वाले राजनीति से ओतप्रोत नेता हैं और तुम उन्हें सत्यवादी होने का सर्टिफिकेट दिए जा रहे हो।"

"समाज में सारे पापों के कारण नेता ही हैं यह सत्य सारे जग को पता है। फिर भी मुंह से निकली सच को झूठ और झूठ को सच के रूप में मनवाने की कला कितनों में होती है?"

"यह बात तो नेताओं में डीएनए और उंगलियों के निशान की तरह के कॉपीराइट हैं।"

"जो करते हैं वही बताने वाले उस्तादों की तरह नेता भी पर्दे के पीछे किए जाने वाले कामों को अनायास कभी बाहर बताते रहते हैं। ऐसी ईमानदारी के चलते नेताओं के वंश की निरंतरता बनी हुई है। वोटों के पर्व के समय नेताओं द्वारा पिलाई गई शराब, बांटे गए पैसे.... इनके बारे में नेता कहीं भी नहीं बताते। किस मोहल्ले में कितना बांटा गया है पूरा हिसाब लिख कर रखते हैं और उसी जनता के पैसे को अवैध रूप से वसूल करते हुए अपना हिसाब ठीक कर रहे हैं। नेताओं खर्चा गया हर रुपया उनकी पूंजी है। खर्चे गए पैसों के सौ गुना प्रतिफल जोड़ लेते हैं। लेकिन जनता, नेता द्वारा बांटे गए पैसे वोट डालने के पहले ही खत्म कर लेती है और पांच साल नेताओं के चारों ओर चक्कर लगाते रहती है।"

"शायद इसी वजह से नेता मतदाताओं को कुछ भी कह देते हैं लगता है उन्होंने सबको खरीद लिया है।"

"और क्या? पैसे देकर वोट खरीद रहे हैं तो यही दुस्साहस उनमें शर्मो हया को गायब कर रहा है।"

"इसलिए शायद एक नेता जी ने अपने अनुयायियों के साथ आत्मीयता भरी मन की बातें बांटते हुए घोषणा की  कि हम सिर्फ चोरी के नकली वोटों से  जीते हैं।"

"सही कहा आपने।  एक बार वोट देकर जिताने के बाद वोट देने वाली जनता कुछ नहीं कर सकती  है,  ऐसा लोकतंत्र है हमारा। वोट हाथ से छूटने के बाद मतदाता का मूल्य शून्य हो जाता है।  इसी वजह से दुस्साहसी होकर नेता कुछ भी बोलने से नहीं हिचकिचाते।"  

कुछ भी हो सच बोलना हो तो साहस की जरूरत होती है "और वह सबके लिए संभव नहीं है।"

झूठ को सच का मुलम्मा चढ़ाने के लिए, न्याय को अन्याय का जामा पहनाने के लिए, सारे अनैतिक धंधे को नैतिक साबित करने के लिए सिर्फ साहस ही नहीं, शकुनी जैसी कुबुद्धि भी जरूरी है और यह अति विद्वत्ता नेताओं को जन्म से ही संक्रमित होती है।"

"मतलब नेताओं की कलाएं सभी को आसानी से हासिल नहीं होती यही मतलब है न आपका।"

"हमारे नेताओं ने जितने घर गरीबों के लिए बनवाने का दावा  किया है, उनका हिसाब करें तो हमारे देश के ही नहीं, पड़ोसी देश के गरीब लोग भी घर के मालिक हो सकते हैं। इतने सारे घर बनाने के बावजूद झोपड़पट्टियां, गंदे नालों के किनारे झोपड़ियों की लंबी कतारें क्यों है ...यह हम जैसे छोटी बुद्धि के लोगों को समझ में न आने वाला सबसे बड़ा सवाल है। गरीबी और गरीबों को हमने सुधार दिया है, उनका विकास कर दिया है ऐसा हम आजादी के बाद से सुन रहे हैं। यह नेताओं द्वारा गाया जा रहा है पुराना, सड़ा हुआ बासी गाना है।  फिर भी दुबले पतले, अधनंगे,गरीब गुरबा यत्र तत्र दिखाई पड़ते हैं। कहते हैं घर घर में हमने पानी पहुंचाया है, सबके गले में अमृत डाला है। बावजूद इसके घर घर के सामने गलियों में पानी के लिए मारामारी देखते हैं। नेताओं के कल्पित दुनिया का यह उदाहरण है।

जो कहते हैं वह करते नहीं और जिसे नहीं करना चाहिए उसे करते हैं। ऐसे में  बार-बार मतदाताओं के पास आकर किस तरह वोट मांगते हैं?"

"जनता की याददाश्त बहुत कमजोर होती है, यह सारे नेताओं का मूल सिद्धांत है और सारी राजनीति इसी सिद्धांत पर चला रहे हैं।"

"तो क्या सचमुच जनता सारा कुछ भूल जाती है या भूल गई है?"

"जनता की सबसे बड़ी कमजोरी नेताओं पर विश्वास करने का गुण है। विशाल हृदयी जनता के ..एक बार और मौका देते हैं, एक और बार देख लें जैसे गुण ही नेताओं की प्राण प्रतिष्ठा कर रहे हैं। यह करेंगे वह करेंगे कहते हैं। सत्ता में आते हैं। कुछ किए बिना ही चुनावी समय पर जनता के आंगन में कौओं की तरह आकर वही पुराना रोना-धोना, वादे इरादे, कांव कांव पेश करते हैं। जनता भी पुरानी बातें भूलकर, नए वादों पर विश्वास करने लगती है। यही कमजोरी नेताओं के लिए फायदेमंद साबित हो रही है। अगर सचमुच पुराना सारा कुछ याद रख कर नेताओं से उसका हिसाब मांगे  तो नेताओं को मुंह छुपाने की जगह नहीं मिलेगी। एक और बार मौका दें कहते हुए बार-बार मतदाताओं से मांगना जारी रहता है और भुलक्कड़ जनता बार-बार उन्हें जिताने के नाम पर वोट देती है लेकिन समस्याएं चाहे छोटी हों या बड़ी वही के वही रह जाती हैं। समस्याओं का ढेर बढ़ जाता है और जिंदगी यूं ही चलती रहती है।  अब सोचना यह है कि बदलना किसे है? यह तो जनता को ही फैसला करना होगा।"

डॉ0 टी0 महादेव राव

विशाखपट्नम (आंध्र प्रदेश)

9394290204