जब पत्ते सूख जाते हैं
तब पेड़ उड़े त्याग देते हैं,
वृक्ष सदा तैयार रहता है
स्वागत के लिए
नवपल्लवित पत्तों का,
पर इसके लिए किसे दें दोष,
पत्तों को, पौधों को या वृक्षों को,
ये तो प्रकृति का एक चक्र है,
नहीं किसी का दृष्टि वक्र है,
कायनात जन्म देता है
तो समेटता भी है,
निःशक्त सुर्ख पत्ते फिर भी
पर्यावरण का साथ देता है,
जलने पर ताप देता है,
मिट्टी में मिल खाद देता है,
कम नहीं होता उसका महत्व,
बिल्कुल उन पति की मौत के बाद
प्रताड़ित होती महिलाओं की तरह,
जो तब भी सोचती है
अपने से ज्यादा परिवार के लिए,
रहती है संकल्पित देने आधार के लिए,
पत्ते सूख गए तो क्या हुआ
शाख अभी बाकी है,
किसी की मौत पर
देना दूसरों को दोष क्यों?
मकान को घर बनना और
बनाया जाना जरूरी है,
जो संभव नहीं उन औरतों के बिना।
राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ छग