मैं धीरे धीरे कुछ कुछ बुदबुदा रहा था,
जोर जोर से चिल्ला रहा था,
अपने लोगों को आवाज लगा रहा था,
सबसे पहले पिताजी को पुकारा,
बेटा मैं तुम्हारे साथ नहीं हूं
जग में स्वीकारा,
मां को चिल्लाया,
कोई जवाब नहीं आया,
बड़ी बहन को बुलाया,
अब तो दुश्मन हो भाई जवाब आया,
भाई को आवाज लगाया,
बर्बाद करके मानूंगा वो गुर्राया,
छोटी बहनों पर यकीन था वो सुनेंगे,
पता नहीं था मां की नफरत को चुनेंगे,
पूरे गांव को बुलाया,
बहिष्कृत हो सबने फरमान सुनाया,
अंत में उम्मीद थी समाज वाले आएंगे,
मेरी समस्याओं पर गौर फरमाएंगे,
पर समाज वाले भी कहां जाग रहे हैं,
वो खुद अपनी समस्या से भाग रहे हैं,
उस वक्त समझ में आया,
कि कोई नहीं अपना सब है पराया,
ये सब देख कर हिम्मत नहीं हुआ
बीबी बच्चों से नजरें मिलाऊं,
सहायता के लिए बुलाऊं,
थक हार कर मौत को बुलाया,
तक्षण वो सामने आया,
और प्यार से समझाया,
कि अंतिम सत्य सिर्फ मुझे जानों,
किसी को अपना मत मानों,
मैं तुम्हारा सच्चा हमदर्द हूं मुझे जानो,
हड़बड़ा कर नींद से जागा
और सोचा मेरा कौन है,
उसी दिन जान पाया कि
जरूरत में हर आस और रिश्ता
हो जाता मौन है,
मौत ने बता दिया कि मैं ही काम आऊंगा,
बाकी की आस छोड़ो मैं ही साथ निभाउंगा।
राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ छग