सर्दी मुक्तक

आहिस्ते रह वक्त झूमते,धुंधें भी कुछ मौन बाँचते।

ठंडी भोर सजी सुहासिनी,नैनों में मुसकान  झाँकते।।

मुग्धा दुल्हन-सी लजा रही,तारे भूषण-से झिलमिले-

सामंजस्य  विधान शोभते,सर्दी के तल भाव  मोहते।

मीरा भारती,

पटना,बिहार।