समन्दर।

हादसों की गहराई,

समझने के लिए,

इन्सानी फितरत के स्वाद को,

समझना होगा।

यह दुनिया की दस्तूर है,

हमें संभलकर रहना होगा।

इन्सानी फितरत है कि,

सबकुछ सहन कर लेती है,

कितनी अजीब बात है,

तकलीफों की हदें तक सह लेती है।

यह एक समन्दर है,

कितने हादसे और यादें समाईं हुईं है,

गहराई को नापने की जुर्रत न करें यहां,

यह बस जग हंसाई है।

यह इन्सानी फितरत है,

आज़ बन चुकी हकीकत है।

हमें अपने अपनी रूह से ही,

अब सवाल करना होगा,

तब जाकर कहीं सच्चाई आएंगी सामने,

हर कुछ सामने आकर,

सही- सही दिखने लगेगा।

डॉ० अशोक,पटना,बिहार।