मानव मन

मानव मन के गहन गह्वर में,

एक ऐसा स्थान भी होता है,

जिसकी रिक्ति की पूर्ति में,

धन वैभव भी अक्षम होता है।


कोई पर्ण कुटीर में भी,

 सरस जीवन बिताता,

कोई महलों में रहकर भी,

अन्तः कोलाहल से व्यथित होता है।


समृद्धि अगर सरसता का आधार होती,

मीरा ना वन वन भटकती होती।

गौतम राजमहल छोड़ खुश थे,

कोई अट्टलिकाओं में भी एकाकी रोता है।


ईश्वर प्रदत्त उपहार है जीवन,

सरसता के बीज जो इसमें बोता है,

वह सदा रहता संतुष्ट खुशहाल,

 ना जाने क्यों मनुज दुर्लभ जीवन

 यूँ प्रतिपल खोता है।


डॉ.रीमा सिन्हा (लखनऊ)