समुंदर सा प्रेम

मेरे हर खुशी के हक़दार हो तुम

क्यों पराये होकर भी अपने से लगते हो

आये हो मेरे पतझड़ से जीवन में

तुम सावन की बरसात लिए, 


जब भी देखूँ तुम्हारी आँखों में डूब सी जाती हूँ

है सागर सी गहरी इतनी

क्यों रहते हो बेचैन, 

आँखों में समुंदर सा प्रेम लिए, 


भूल जाती हूँ अपने सारे गम तुम्हारी एक मुस्कान से

मिली है खुशियाँ इतनी, 

जैसे आये हो खुशियों की सारी दुकान लिए, 


पड़ी थी सूखे फूलों की तरह

खुश्बू ऐ बहारे नही था जीवन में

प्रेम की खुश्बू ऐसे बिखरे

जैसे आये हो फूलों की पूरी बागान लिए, 


चूम कर मेरे माथे को जब भर लेते हो आलिंगन में

ऐसा लगता है मानो,छट गई 

आमावस की काली रात

आ गई पूर्णिमा चांदनी रात लिए!!


स्वरचित और मौलिक 

सरिता श्रीवास्तव सृजन

अनूपपुर मध्यप्रदेश