सांप के जहर का अरबों का व्यापार

देश की राजधानी दिल्ली में तरह-तरह के उल्टे-सीधे धंधे होते हैं। अपराध का एक भी ऐसा तरीका नहीं है, जो भारत की राजनानी में न होता हो। नवंबर महीने के पहले सप्ताह में सांप के जहर को पार्टीड्रग के रूप में बेचने के गोरखधंधे का खुलासा हुआ है। भाजपा सांसद मेनका गांधी की संस्था पीपल फार एनिमल्स (पीएफए) के प्रयास से यह भांडा फूटा है। पता चला कि नोएडा में एक जगह रेव पार्टी का आयोजन किया गया था, जिसमें सांप के जहर से किक लेने के लिए देश-विदेश के युवक-युवतियां आई थीं।

इस पार्टी पर अचानक छापा मार कर पुलिस ने आयोजकों के पास से 22 मिलीग्राम जहर तथा कोबरा सहित कुल 9 तरह के सांप बरामद किए हैं।कहा जाता है कि इस संपूर्ण विवाद में बिगबौस विजेता एल्विस यादव का नाम आया है।

वैसे तो नशाखोर नशा करने के लिए अनेक नशीले पदार्थों का सेवन करते हैं। अब इसमें सांप का नशा भी शामिल हो गया है। पिछले तीन चार सालों में इसका क्रेज और मात्रा काफी बढ़ी है। नशा करने के लिए जहर उपलब्ध कराने के लिए अनेक खतरनाक और संगठित गिरोह इस क्षेत्र में सक्रिय हैं। कुछ समय पहले थाणे शहर की पुलिस ने दो लोगों को तीन मिलीग्राम सांप के जहर के साथ पकड़ा था। इस तीन मिलीग्राम सांप के जहर की बाजार में कीमत एक लाख बीस हजार रुपए है।

 थाणे जिला सांप के जहर के सौदागरों के लिए मुख्य अड्डा बन गया है। इसके दो कारण हैं। एक तो यहां धनाढ्यों की संख्या अधिक है, दूसरे थाणे के जंगलों में अनेक जहरीले सांप रहते हैं। जिसकी वजह से यहां सांप के जहर का व्यापार फलफूल रहा है। अब तक पुलिस ने अलग-अलग कार्रवाई में लगभग एक किलोग्राम सांप का जहर जब्त किया है। बाजार में इसकी कीमत लगभग चार करोड़ रुपए है। 

यह जाल केवल देश में ही नहीं, विदेशों में भी फैला है। यह धंधा पूरे देश में खास कर दक्षिण के राज्यों में सांप के जहर की तस्करी होती है। जानकार सूत्रों के अनुसार केवल महाराष्ट्र में सांप के जहर का कारोबार सौ करोड़ रुपए तक पहुंच गया है। इससे पूरे देश में फैले इस जहरीले कारोबार का अंदाजा लगाया जा सकता है।

महाराष्ट्र के जंगलों में जहरीले सांपों और नागों को खोज कर पकड़ा जाता है और उनका जहर निकाल कर मुंबई तक लाने में सैकड़ो लोग शामिल हैं। महाराष्ट्र में विशेष कर पश्चिमी महाराष्ट्र के सांगली, सतारा, कोल्हापुर, सोलापुर, पुणे और अहमदनगर जहर के इस कारोबार के मुख्य अड्डा हैं। तस्करी के इस कारोबार को अगर जल्दी नहीं रोका गया तो एक दिन बाघ की तरह जहरीले नागों का भी अस्तित्व खतरे में पड़ सकता है। भारत में नाग की लगभग पंद्रह सौ प्रजातियां पाई जाती हैं।

 अकेले महाराष्ट्र में ही लगभग 60 तरह के नाग पाए जाते हैं। इनमें लगभग आधा दर्जन नाग जहरीले होते हैं। ऊनमें भी कोबरा, मणियार, घोणस और कुरसा जाति के नाम ही अत्यंत जहरीले होते हैं। सामान्य रूप से कोबरा में से 120 से 125 मिलीग्राम, घोड़स से 70 से 80 मिलीग्राम, मड्रियार से 8 से 10 मिलीग्राम और कुरसा से 25 से 30 मिलीग्राम जहर एक बार में निकलता है। 

पार्टी ड्रग के रूप में उपयोग में लाने के लिए सांप के जहर को हल्का करने के लिए एक प्रक्रिया से गुजारा जाता है। जिसे पाउडर या गोली के रूप में क्लबों-पार्टी में ड्रिंक्स के साथ मिला कर दिया जाता है। रेव पार्टी सर्कल में किंग कोबरा का जहर के-76 कोड नाम से जाना जाता है। इस आधे लीटर के-76 जहर की कीमत एक करोड़ रुपए होती है।

नशा करने वालों में सांप के जहर की बड़ी मांग होती है। सूत्रों के अनुसार जहर को सुई की नोक पर एकदम छोटी बूंद लगा कर सिगरेट पर रख कर कश लिया जाता है। एक नशेड़ी के बताए अनुसार इसका नशा चरस, हेरोइन, मारीजुआना और अफीम आदि नशीले पदार्थों से भी कई गुना अधिक होता है। नाग के जहर का कश लगाने के बाद इसका नशा कम से कम आठ से दस घंटे तक रहता है।नशा करने के अलावा किसी की हत्या करने में भी इस जहर का दुरुपयोग होता है।

सांप का जहर निकालने और इकट्ठा करने के लिए नियमानुसार वनविभाग की लिखित अनुमति जरूरी है। मात्र दो चार संस्थाओं के पास ही इसकी अनुमति है। सांप का जहर निकालने की भी वैज्ञानिक पद्धति है। शून्य से नीचे के तापमान में इस जहर को सुरक्षित रखना पड़ता है। गैरक्नूनी रूप से सांप का जहर निकालने वाले लोग इन सब प्रक्रियाओं की बहुत परवाह नहीं करते। ये सांप को निर्दयता से पकड़ कर उसी तरह सांप को निर्दयता से अधमरा कर के उसका पूरा जहर निकाल कर छोड़ देते हैं। कभी कभी तो नाग को मार कर उसका मुंह फाड़ कर उसकी जहर की पूरी थैली ही निकाल लेते हैं।

नाग जितना अधिक जहरीला, उतनी अधिक उसकी कीमत। जहर के बाजार में आज सब से अधिक कीमत मड़ियार और कुरसा नाग के जहर की है। इनके एक मिलीग्राम जहर की न्यूनतम कीमत एक लाख रुपए से अधिक है। जबकि कोबरा और घोड़ास प्रजाति के सांप के एक मिलीग्राम जहर की कीमत चालीस  हजार से साठ हजार रुपए है। इस कीमत में मांग और सप्लाई के हिसाब से घट बढ़ होती रहती है। 

जहर को शून्यांक नीचे के तापमान में न रखने से इसकी गुणवत्ता खराब हो जाती है है और यह औषधीय उपयोग लायक नहीं रहता। तब तस्कर इस जहर को नशेबाजों के बीच पहुंचा देते हैं। क्योंकि दवा कंपनियां इसे नहीं लेतीं। तस्कर कभी-कभार इसमें मिलावट भी कर देते हैं। यह मिलावट वाला जहर सस्ता होता है और शुद्ध जहर (कांस्ट्रेट) ऊंचे दाम पर बिकता है।

मनुष्य एक ऐसा अधम प्राणी है, जो सांप के जहर की अच्छी-खराब दोनों क्वालिटी को पचा जाती है। सांप के जहर का उपयोग नशे के लिए होता है। उसी तरह स्नैकवेनम (सांप का जहर) का उपयोग जीवनरक्षक दवा बनाने के लिए होता है। चलिए इस बारे में थोड़ा विस्तार से बात करते हैं।

जब कहीं सांप का उल्लेख होता है तो युगों से चली आ रही सांप की छाप के कारण हम सभी के मन में सांप के प्रति घृणास्पद और अधम प्राणी होने का विचार आता है। माना जाता है कि सांप कपटी, धोखेबाज और दुश्मन है। 

हर्पेटोलाॅजी विज्ञान (प्राणीशास्त्र की शाखा, जिसमें पेट से चलने प्राणियों और उभयचर के बारे में अध्ययन किया जाता है) द्वारा पिछले दशकों में किए गए शोध द्वारा पेट से चलने वाले प्राणियों का भौगोलिक विभाजन, उनके जीवन और रीतिभांत के बारे में जानकारी दी गई है। खास कर बिना किसी अपवाद के सभी सर्प जहलीले होते हैं, इस मान्यता को गलत साबित किया गया है। मानवजति से परिचित सर्प की ऐसी 2500 प्रजातियों में से मात्र 412 प्रजातियां यानी कि पांचवें भाग से भी कम जहरीली हैं। 

शरीर में फुर्ती और ताकत लाने के लिए आप से कोई सुबह सांप खाने के लिए कहे तो आप को कैसा लगेगा? आप को विश्वास नहीं होगा, लेकिन टानिक प्रेमी सिउल निवासी (दक्षिण कोरिया) के लोग रोजाना रेस्टोरेंट में जा कर लगभग 30 लाख सांप खा जाते हैं। वहां ऐसे तमाम रेस्टोरेंट हैं, जिनमें केवल सांप का सूप मिलता है।इस सूप को वहां की स्थानीय भाषा में वाॅन टोन और बेम टांग कहा जाता है।

ऐसा नहीं है कि सांप का जहर केवल शारीरिक फुर्ती पाने के लिए ही है। हृदय रोग के अक्सीर इलाज के लिए भी सांप का जहर उपयोगी साबित हुआ है। इसके लिए दुनिया के अनेक देशों में शोध हो रहे हैं। इस तरह का प्रयोग दिल्ली के हार्डिंग मेडिकल कालेज में भी चल रहा है। इस कालेज में चूहों को सांप का जहर देने से जो परिणाम देखने को मिला है, उससे यही लगता है कि हृदय रोग की अक्सीर दवा अब जल्दी ही मिल जाएगी।

इस कालेज का शोध करने वाला एक समूह अंतरराष्ट्रीय कांग्रेस में अभी जल्दी ही ऐसा निष्कर्ष प्रस्तुत किया है कि चूहों के हृदय के काम को कृत्रिम रूप से रोक कर उन्हें सांप के जहर का इंजेक्शन दिया गया तो वह फिर से काम करने लगा। 

शोध करने वाले समूह द्वारा शोध पत्र पेश करने में मदद करने वाले प्रोफेसर आफ मेडिसिन डॉ. एम पी श्रीवास्तव ने बताया था कि ससला, मेढक और शुअर के हृदय की तकलीफें डीजीटालीस नाग के द्रव्य से जितनी असरकारक रूप से दूर की जा सकती हैं, उतनी ही असरकारक रूप से चूहे के हृदय की तकलीफ सांप के जहर से दूर की जा सकती है। 

जहर का प्रकिण्व (एंजाइम) ऐसा पदार्थ है, जो सांप के पाचन क्रिया को वेग देता है। वैज्ञानिक साहित्य में लंबे समय तक यह सवाल चर्चा में रहा कि प्रकिण्व बूरी असर के लिए जिम्मेदार नहीं है? यह साबित हुआ है कि तमाम प्रकिण्वो जहर पैदा कर सकते हैं और मौत का सीधा कारण बन सकते हैं। ज्यादातर प्रकिण्वो जो जहरीले नहीं होते, पर अगर जहर में दूसरे स्वतंत्र जहरीले तत्व हों तो? 1960-70 के दशक के बीच वैज्ञानिकों को इस पदार्थ का न्यूट्रोटाक्शिन मिला था, जो ज्ञानतंतुओं पर बुरा असर करने के लिए जिम्मेदार है।

आधुनिक विज्ञान ने सांप के जहर को जीवनदायी साबित कर दिया है। जहरीले सांप का जालिम विष केवल हृदय रोग पर ही नहीं, अन्य कितने रोगों पर गुणकारी साबित हुआ है।

सही अर्थ में सांप एक निर्दोष प्राणी है। इस देश में एक ऐसा भी वर्ग है, जो सांप को देवता की तरह पूजता है। नाग पंचमी को सांप को दूध पिलाया जाता है। दीवार पर इसके रेखाचित्र बना कर उसकी पूजा कर के आरती उतारने वाला एक वर्ग गुजरात और राजस्थान में आज भी देखने को मिलता है। पर जमाने ने एक बड़ी करवट ले ली है। आज सांप और सांप का जहर मनुष्य के लिए व्यवसाय बन गया है।

बात तमिलनाडु के एक कस्बे की है। उस कस्बे में सांपों की भरमार है। इस कस्बे के लोग सांपों से डरते आए हैं। पर अब इस कस्बे में सांपों को मनुष्य से डर लगने लगा है। सांप पकड़ना या मारना अपराध है। चोरीछुपे सांप पकड़े या मारें तो पकड़े जाने पर उसे दो साल की कैद और दो हजार रुपए जुर्माना भरना पड़ता है। पर इस्ला जाति इस तरह के कानून की कोई परवाह नहीं करती। आज वे सांप के जहर और उसके चमड़े से मोटी कमाई कर रहे हैं।

अभी जल्दी एक्सरसाइज एन्फोर्समेंट और कोट्टायम के एंटी नारकोटिक्स स्पेशल स्क्वायड विभाग ने मिली सूचना के आधार पर 59 वर्षीय ओमानाकूट्टुम नायर को गिरफ्तार किया था। उसके पास से दो लीटर सांप का जहर बरामद किया गया था। कहा जाता है कि अंतरराष्ट्रीय ड्रग बाजार में सांप के दो लीटर जहर की कीमत करीब 15 करोड़ रुपए है। एंटी नारकोटिक्स स्पेशल स्क्वायड के अधिकारी के अनुसार अब जब दवाओं में सांप के जहर का उपयोग बढ़ा है तो सांप के जहर की तस्करी भी काफी बढ़ी है।

एक सांप से एक बार में करीब 5 मिलीलीटर जितना जहर मिलता है। एक बार जहर निकालने के बाद करीब एक सप्ताह बाद ही दोबारा जहर निकाला जा सकता है। तमिलनाडु की सरकार ने 1976 में सांपों को पकड़ने और मारने पर प्रतिबंध लगाया तो लोग हैरानी में पड़ गए। लेकिन इसका भी रास्ता खोजने में उन्हें देर नहीं लगी। जो लोग सांप पकड़ने का धंधा करते थे, उन्होंने अपनी संस्थाएं बना लीं, जिसका नाम रखा 'इस्ला स्नेक केयर कोआपरेटिव सोसायटी'।

सांप पकड़ने की यह संस्था आदिवासियों को सांप को जरा भी तकलीफ न हो इस तरह की शिक्षा देती है। 1978 में 52 इस्ला परिवार को सांप पकड़ने का लाइसेंस दिया गया था, जो अभी भी चल रहा है। भारत के लाइसेंसों में यह एक विरल लाइसेंस कहा जाता है।

ये लोग सभी तरह के सांप पकड़ते हैं।इन्हें सांप पकड़ने की वैज्ञानिक रीतिरिवाज सिखाए गए हैं। यह सांप पकड़कर सोसायटी की प्रयोगशाला में लाते हैं। नाग और केट्स सांप पकड़ने वाले को एक सांप का 15 रुपए और स्पेशल वाइपर पकड़ने वाले को एक सांप का 20 रुपए मिलता है।

मुंबई के कैंसर पर शोध करने वाली संस्था के एक प्रोफेसर के कैंसर के तमाम प्रकारों पर नाग के जहर से अलग किया गया एक पदार्थ असरकारक है। 'पी-6' नाम का यह पदार्थ योशीदा सेकामो प्रकार के कैंसर को सुधारता है। 'पी-6' एक प्रकार का प्रोटीन है। नाग के कच्चे जहर से पी-6 मिलता है। प्रोफेसर के अनुसार उन्होंने अब तक 60 से अधिक कैंसर वाले चूहों का रोग पी-6 से दूर किया है। 

चूहे के वजन के प्रति किलोग्राम 1.72 मिलीग्राम डोज असरकारक है। प्रोफेसर के अनुसार पर अभी तक किसी मानव पर इसका प्रयोग नहीं हुआ है। पर टेस्ट ट्यूब में मानव कैंसर कोशिकाओं पर पी-6 कैंसर विरोधी असरकारक दिखाई पड़ा है। नाग के जहर से अलग किया गया पी-6 प्रोटीन जहलीला नहीं है। ट्यूमर की कोशिकाओं सहित तमाम प्रकार के नाग का प्रोटीन असरदार रूप से काम करता है।

वर्तमान निर्यात नीति की जो घोषणा की गई है, उसके अनुसार, सांपों को मारे बगैर सांपों का जहर निकालने की सुविधा वाली प्रयोगशालाओं और संस्थाओं को छूट दी गई है। उत्तर पश्चिम मलेशिया में पाए जाने वाले सांप के विष से आजकल एक ऐसी दवा बनाई जा रही है, जो नसों में होने वाली खून की रुकावट को दूर करने वाली आश्चर्यजनक सफलता मिली है। 

डाक्टर वैज्ञानिकों का मानना है कि 'आरविन' नाम की इस औषधि से शिरावरोध उर्फ थ्रोम्बोसिसन का सफलतापूर्वक इलाज हो सकता है। इसके अलावा सांप का विष कैंसर जैसे असाध्य और भयानक रोग के इलाज में उपयोगी साबित हुआ है। खास कर कोबरा (नाग) के जहर से बनने वाली दवा कैंसर के निवारण के लिए रामबाण साबित हुई है। 'एन्ध्रोइटिस' के इलाज के लिए भी सांप का जहर उपयोगी है।

सांप का जहर इतना अधिक उपयोगी साबित हुआ है कि इसका मूल्य सोने से भी अधिक है। भारत में नाग का जहर सब से अधिक मिलता है। खास कर जुलाई-अगस्त में नाग 3 हजार मिलीग्राम जितना जहर रखता है। केट सांप का जहर लगभग 15 हजार रुपए प्रतिग्राम बिकता है। विदेशों में यह जहर और महंगा है। इससे विदेशों सांप के जहर की बहुत मांग है। मुंबई में हाफकिन इंस्टीट्यूट में एक सर्पगृह है, जहां सांपों का जहर निकाला जाता है और इससे विदेशी मुद्रा प्राप्त की जाती है।

सांप के जहर का औषधि के रूप में उपयोग किया जा सकता है, यह बात भारत युगों से जानता था। महान चिकित्सक चरक और बागभट्ट ने अपने समय में तमाम रोगों पर सर्पविष का उपयोग किया था। हांगकांग और चीन में भी लोग सांप के जहर का दवा के रूप में उपयोग करते हैं। इतना ही नहीं, वे मरे हुए या जीवित सांप का मांस भी खाते हैं। अमेरिका में तो खाने के लिए 'गार्डर' सांप का विशेष उपयोग होता है और यह बंद डिब्बे में मिलता है।

एक शोध संस्था द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार दक्षिण कोरिया की राजधानी सिउल (सोल) में लगभग 60 हजार सांप खाने वाले रहते हैं। राजधानी के सांप रेस्टोरेंट वाले एक कटोरी सांप के सूप के लिए 20 अमेरिकी डालर वसूल करते हैं। वे दावा करते हैं कि अगर कोई आदमी दस दिन तक रोजाना एक कटोरी सूप पिए तो उसकी जवानी और फुर्ती बढ़ जाती है। 

लेकिन उनके इस दावे को अभी कोई चिकित्सीय समर्थन नहीं मिला है। पर सांप का सूप पीने वालों की श्रद्धा दृढ़ होती जा रही है और इसीलिए सांप पीने वालों की संख्या बढ़ती जा रही है। जहर से बनने वाले स्फटिकों में से विप्रोसाल, विप्रोक्सीन जैसी आश्चर्यजनक दवाए, जोड़ों पर लगाने वाले मलहम और हृदय रोग तथा रक्तवाहिनियों की दवाएं बनती हैं। 

सांप का जीवनकाल 10 से 35 साल माना जाता है। एक बार खुराक लेने के बाद सांप महीनों बिना खुराक लिए चल सकता है। भारत में होने वाले सांपों में से केट, रसेल वाइपर, करैंत जैसे सांप और कोबरा, ये चार जाति के सांप अधिक जहरीले माने जाते हैं।इन सांपों के जहर से तैयार होने वाले 'सीरम' से, जिन्हें सांप काटता है, उन्हें बचाने के लिए एक रसी बनाई जाती है।

सांप ठंडे खून वाला एक रेंगने वाला प्राणी है। सांप गरम प्रदेश से आसानी से जी सकता है। पर ठंडे प्रदेश में आसानी से नहीं जी सकता। बरसात में सांप तमाम प्रवृत्तियां करता है, इसलिए बरसात में यह आसानी से दिखाई दे जाता है। सांप को गंध की तीव्र शक्ति होती है। यह जमीन के स्पंदन को भी पहचानता है। सांप की नजर हिलनेडुलने वाली वस्तुओं से अधिक शक्तिमान है। चूहे और मेढक जैसे जीव इसकी खुराक हैं। केट और कोबरा (नाग) की खुराक अन्य सांप होते हैं। शरीर की रचना और त्वचा की स्थिति की वजह से सांप अपने शरीर की मोटाई से अधिक मोटे शिकार को लील लेता है।

भारत में हर सार करीब एक करोड़ सांपों को मार कर उनकी खाल विदेश भेजी जाती है। इससे व्यापारी करीब 10 करोड़ रुपए की कमाई करते हैं। जब कि सांप का शिकार करने वाले भूखो मरते हैं। अमेरिका में लोग बिना जहर वाले सांपों को पालते हैं। सांप की केंचुल से उत्तम प्रकार का सुरमा बनाया जाता है, जो आंखों के लिए लाभदायक होता है।

वीरेंद्र बहादुर सिंह

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