प्यार की भाषा


प्यार की भाषा

कोई न समझता

नहीं कभी दिखता

वही प्यार कहलाता

क्या क्या वह कर जाता

प्यार को पाने के खातिर

कर देता कुछ लफ्ज जाहिर

मेहबूब के लिए वह हाजिर

दिनों जान से वह चाहता

खुशियाँ उसपर लुटाता

हसीं चेहरे पर वो लाता

देखकर उसे रास आता

खयाल उसका रखता

हर कदम साथ चलता

नाराज हो जाऊ कभी

तो वह भी रो पड़ता


सौ, कविता पवन दाळू, खामगाव, महाराष्ट्र