भगवा से मुकाबला के लिए इंडिया गठबंधन को चाहिए एक अधिक आकर्षक आख्यान

पांच राज्यों के चुनाव संपन्न होने के बाद सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी और विपक्ष 2024 के लोकसभा चुनाव की तैयारी में लग गये हैं। भाजपा हिंदी पट्टी में अपना गढ़ बनाये रखने को लेकर आश्वस्त है और विपक्ष उन्हें प्रभावी ढंग से चुनौती देने में विफल रहा है। नवंबर में हुए चुनावों में राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में भजपा ने जीत हासिल कर ली है।

भाजपा भारत में एक प्रमुख राजनीतिक शक्ति बन गई है। पार्टी ने अपनी पहुंच का विस्तार किया है और वर्तमान में 18 राज्यों में सत्ता पर काबिज है। यह इसके दृढ़ नेतृत्व, सुव्यवस्थित संरचना, विशाल संसाधनों और प्रभावी संचार के कारण है। इसके अलावा, भारतीय राजनीति में दक्षिणपंथ की ओर एक महत्वपूर्ण बदलाव आया है। नरेंद्र मोदी और अन्य विपक्षी नेताओं की लोकप्रियता रेटिंग में काफी अंतर है। पार्टी का नया नारा है-नई गति, नई प्रतिज्ञा। 

पिछले दस वर्षों में, नरेंद्र मोदी ने भाजपा की हिंदू राष्ट्रवाद की मूल अवधारणा को प्रभावी ढंग से बढ़ावा दिया है। पार्टी ने मतदाताओं को जीतने के लिए नकद हस्तांतरण, मुफ्त राशन और किफायती गैस सिलेंडर जैसी कल्याणकारी योजनाएं लागू की हैं। एक और महत्वपूर्ण विचार अयोध्या में राम मंदिर का उद्घाटन अगले साल जनवरी में करने की योजना है। उच्च बेरोजगारी, मुद्रास्फीति और मूल्य वृद्धि जैसी चुनौतियों का सामना करने के बावजूद, ये योजनाएं जनता के बीच लोकप्रिय बनी हुई हैं। भाजपा इन्हीं के आधार पर पार्टी के लिए तीसरे कार्यकाल की वकालत कर रही है।

 भाजपा को दक्षिणी राज्यों में समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है और पार्टी इन राज्यों में चुनाव जीतने के लिए केवल मोदी के करिश्मे पर निर्भर रहने से परे नयी रणनीति अपना सकती है। केन्द्रीय नेतृत्व पार्टी के भीतर आंतरिक असहमति को दूर करने की कोशिश कर रहा है। हालांकि, उन्हें एक नया आख्यान बनाने की जरूरत है जो दक्षिणी राज्यों के मतदाताओं के साथ प्रतिध्वनित हो। 

हिंदुत्व और सनातन धर्म की मौजूदा विचारधारा इन राज्यों के लोगों को पसंद नहीं आ रही है। एक ऐसी विचारधारा वाली पार्टी के रूप में यह उत्तर भारत की जरूरतों को पूरा करती है। अन्य राजनीतिक दलों के विपरीत, द्रविड़ दलों ने दशकों से सामाजिक न्याय को बढ़ावा दिया है। तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन द्रविड़ प्रशासन मॉडल की बात करते रहे हैं।

 दक्षिणी क्षेत्र में 543 लोकसभा सीटों में से 131 सीटें हैं। केरल में कई कम्युनिस्ट समर्थक हैं। तमिलनाडु मुख्य रूप से नास्तिक है, और भाजपा का कर्नाटक में कुछ आधार है। हालांकि, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में क्षेत्रीय पार्टियां हैं, जिससे इन राज्यों में भाजपा का समर्थन सीमित है। विपक्षी इंडिया गठबंधन हाल के चुनावों में कांग्रेस के खराब प्रदर्शन से निराश है। अगर सबसे पुरानी पार्टी कम से कम दो उत्तरी भारतीय राज्यों में जीत हासिल करती तो राहुल गांधी सफल हो सकते थे। कांग्रेस को अगले चुनाव से पहले एक नयी चुनावी रणनीति अपनानी होगी।

मोदी को चुनौती देने के लिए अगले चार महीनों में गैर-भाजपा वोटों के विभाजन को रोकने के लिए विपक्षी दलों को एकजुट होना होगा। पहले कदम के रूप में, उन्हें उन सीटों पर एक ही उम्मीदवार खड़ा करने पर सहमत होना चाहिए जहां भाजपा प्राथमिक दावेदार है। कांग्रेस पार्टी को सफलता की अधिक संभावना वाले निर्वाचन क्षेत्रों को जीतने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। 

व्यक्तिगत एजेंडों और अहंकारी सत्तारूढ़ पार्टी को हराने को प्राथमिकता देना आवश्यक है। कांग्रेस को अपने नेतृत्व को अद्यतन करने और पुरानी प्रथाओं को पीछे छोड़ने की जरूरत है। तृणमूल कांग्रेस ने कांग्रेस के खराब प्रदर्शन की आलोचना की और कहा कि भाजपा की जीत कांग्रेस की विफलता का नतीजा है। आंतरिक संघर्षों, कमजोर गठबंधनों और वर्तमान राजनीतिक माहौल की समझ की कमी के कारण कांग्रेस चुनाव हार गई।

 सुधार के लिए, कांग्रेस को उचित भूमिकाओं के लिए सक्षम व्यक्तियों की भर्ती करनी चाहिए और अपने समर्थकों को प्रेरित करना चाहिए। राहुल गांधी ने कांग्रेस पार्टी को पुनर्जीवित करने के लिए 4,000 किलोमीटर की भारत जोड़ो यात्रा का नेतृत्व किया। इससे पार्टी को कर्नाटक और तेलंगाना में महत्वपूर्ण जीत हासिल करने में मदद मिली। हालांकि, यात्रा की सफलता मुख्यतरू दक्षिण भारत तक ही सीमित थी और उत्तर में इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा।

भाजपा से मुकाबला करने के लिए विपक्ष को अधिक धन की आवश्यकता है। भगवा पार्टी अपने अभियान को टॉप गियर में रखने के लिए अपने धन का उपयोग करती है। पिछले पांच वर्षों में कांग्रेस को रुपए 1,547.43 करोड़ की तुलना में भाजपा को रुपए 10,122.03 करोड़ का राजनीतिक दान मिला। कांग्रेस को कॉर्पोरेट योगदान कम हो गया है जबकि भाजपा को उसका योगदान बढ़ गया है।

 हालिया रिपोर्टों के अनुसार, कांग्रेस धन की कमी के कारण अपने चुनाव अभियानों को वित्तपोषित करने के लिए क्राउडफंडिंग पर विचार कर रही है। इसे भजपा के राजनीतिक युद्ध कोष से मुकाबला करने के लिए विशाल धन की आवश्यकता है। पिछले 20 सालों में भाजपा का लोकसभा चुनाव पर खर्च छह गुना बढ़ गया है, जो पिछले लोकसभा चुनाव में 9 हजार करोड़ रुपये से बढ़कर 55 हजार करोड़ रुपये हो गया है। खर्च का एक तिहाई हिस्सा प्रचार के लिए आबंटित किया जाता है। इसके विपरीत, दूसरा सबसे बड़ा खर्च मतदाताओं को सीधा भुगतान है। 

मतदाताओं को रिश्वत देने के कई तरीके हैं। फंड और आरएसएस समर्थित संगठन दोनों के मामले में भाजपा को कांग्रेस के मुकाबले बड़ा फायदा है। सीधे शब्दों में कहें तो भाजपा को दक्षिण के लिए नये सिरे से रणनीति विकसित करने की जरूरत है, जबकि कांग्रेस को उत्तर पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। जहां तक क्षेत्रीय दलों की बात है तो उनकी प्राथमिकता अपने वफादार मतदाता आधार को बनाये रखने की होनी चाहिए। इसके अलावा, मतदाताओं को जीतने के लिए केवल मुफ्त उपहार देना हमेशा पर्याप्त नहीं होता है।

 उनका विश्वास और समर्थन अर्जित करने के लिए और अधिक प्रयास करना आवश्यक है। भारत की लोकतांत्रिक यात्रा एक बड़ी उपलब्धि है जिसकी शायद ही कोई मिसाल हो। अपनी खामियों के बावजूद लोकतंत्र बचा हुआ है और सत्ता का हस्तांतरण 17 बार हो चुका है। आखिरकार, यह अरबों मतदाता ही हैं जो 2024 के लोकसभा चुनाव के बाद केंद्र में सरकार का स्वरूप तय करेंगे।