चुनाव हो गये मुखिया की तैनाती हो गई। पारी खेलने के लिए सड़क खुल गई, अब आंखें खोलकर चलिए बेधड़क, सरपट दौड़ते जाइये, कौन रोकता है। मुखिया बदल गये, साथी भी साथ है नये-नये, नई सरकार चलाइए नई तर्ज पर, आपका अपना इंजिन है, आपकी नई गाड़ी हैं, जरुरी नहीं दूसरों की तरह चलाओ, दूसरी गाड़ियां भले ही कैसे भी थोड़े, सीधी, आड़ी-तिरछी दौड़े, चाहे हवा में उड़ान भरे, हमें अपने तरीके से और अपनी स्पीड में गाड़ी चलाना होगी, इसकी तुम्हें पूरी की पूरी आजादी हैं। आप ये करो चाहे वो करों। आपकी गाड़ी आपकी मर्जी।
विरासत में खाली खजाना, आगे बजट और आगे बड़ा चुनाव ये मुसीबत सिर पर खड़ी, सबको आपसे भरपल्ले आशाएं लगी। पुरानी की नाक बचाना हैं, यहां तो अपनी ही दांव पर लगी, बड़ी मुसीबत है भाई, अब उठाया है बीड़ा तो कुछ कर जाएंगे, तर जाएंगे। मुखिया बने क्यों है, जिम्मेदारी उठाने के लिए, चुनौतियों का सामना करने के लिए। चुनौतियों को निभाएंगे। ईश्वर साथ हैं अकेले थोड़ी हैं, नये पुराने सबकी परीक्षा हैं ये, हम भी अपना कार्यकाल बढ़ाएंगे, अच्छे कार्य करेंगे। चुनौतियों को सिर पर धरेंगे फिर हराएंगे। फिर खुली सड़क परआंखें खोलकर चलना होगा। बंद आंखें तो कभी रखते ही नहीं हम। सरकार चलाने आए हैं, सरपट-सरपट चलाएंगे।
कटु याने कठोर निर्णय तो लेना ही पड़ेंगे, गुंडागर्दी बर्दाश्त नहीं होगी, जनता में फिर से निडरता होगी, ऐसा माहौल बनाएंगे।
अभी तक तो जो लगाम कसी थी अपराधियों में वह बेअसर रही, अब कारगर उपाय कर जाएंगे। जनता कहती हैं भ्रष्टाचार बहुत हैं, रिश्वतखोरी बहुत हैं, गुंडागर्दी बहुत हैं, महिलाएं, बच्चियों पर अपराध बड़े हैं, नागरिकों में असुरक्षा की भावना बढ़ी हैं याने कोई भी सुरक्षित नहीं।
सुबह काम पर गया व्यक्ति शाम को लौट आए तो अपनों को सुकून आता है। ये सब पहले भी होता रहा हैं लेकिन पिछले कई वर्षों में ये सब बहुत बढ़ गया है। कब तक हम जिम्मेदारियां दूसरी या पिछली सरकार पर डालते रहेंगे या इसके लिए दूसरे कंधे ढूंढते रहेंगे। यह बहुत नाइंसाफी है। हम दूसरों पर इसलिए उंगलियां उठाते हैं क्योंकि उसकी आड़ में अपने आप को, अपने लोगों को बचाते हैं।
रेवड़ियां बांटने में खजाने खाली हुए, इनको कौन भरेगा, प्रदेश का युवा बेरोजगारों को काम नहीं, नौकरी नहीं याने बेरोजगारी का स्थाई हल नहीं। मुफ्त पाने की लालसा ने, काम करने की क्षमता को खत्म सा कर दिया। मुफ्त देने के बजाए घर-घर काम देकर फिर कुछ रुपए दिये जाते तो बेहतर होता।
आज भी सरकार पर कर्जों का भारी बोझ और खाली खजाना साथ हैं फिर आगे की व्यवस्था क्या होगी। कर्जे वाली या मंहगें दाम-करों के माध्यम से खजाना भरने वाली। महंगाई इसलिए ऊपर जायेगी, यह कभी नहीं रूकती, फिर भी सरकार की गाड़ी
इन्हीं उलझी हुई पटरियों पर दौड़ानी हैं, अपनी स्पीड से क्योंकि समस्याएं कभी कम नहीं होगी। आने वाला समय आर्थिक रूप से चुनौतियों भरा है।
इसलिए खुली सड़क, आंखें खोलकर चलिए बेधड़क, सरपट-सरपट, कहीं तो पहुंचेंगे ही। हाथ में खजाना खाली पतिला हैं, जतन अब सारे तुमको ही करना है, जुटाना है धन जनता और सरकारी तंत्र के लिए। पगड़ी इसी की रख दी हैं, जो भी जैसी भी बची थी वैसी ही। आऐं, सब आ गये, पूरी टीम आ गई। अपना-अपना दरबार संभालें। जो हैं नयी जिम्मेदारियां, उन्हें खंगाले। जो किस्मत में था वहीं मिलेगा। छोटी-बड़ी छबड़िया दांव में, अब इसे सिर से लगा लो।
मदन वर्मा " माणिक "
इंदौर, मध्यप्रदेश
मो. 6264366070