पर्यावरण को बचाने के लिए किसानों के बीच प्राकृतिक खेती की दिशा में अरुणोदय संस्थान का प्रयास
छतरपुर। आपको बता दें कि प्राकृतिक खेती एवं पर्यावरण संरक्षण जल संरक्षण एवं प्राकृतिक खेती को आधार बनाकर अरुणोदय संस्थान पिछले 10 वर्षों से छतरपुर जिले की चंदला गौरिहार एवं लवकुश नगर ब्लॉकों के किसानों के बीच निरंतर प्राकृतिक खेती के द्वारा महिला किसानों को जोड़ने का कार्य कर रहा है जिससे उनकी आजीविका एवं परंपरागत खेती को अपनाकर रासायनिक जहर से मुक्ति दिलाई जा सके।
प्रतिवर्ष की भांति अरुणोदय संस्थान ने इस वर्ष भी स्थानीय किसानों को रासायनिक डीएपी एवं कीटनाशकों से हो रहे जनहानि पर्यावरण हानी को देखते हुए प्राकृतिक खेती को अपनाने का कार्य किया है जिसमें गौ- आधारित खाद, गौ- आधारित यूरिया एवं गौ- आधारित कीटनाशकों के प्रयोग से हो रहे पर्यावरण नुकसान स्वास्थ्य नुकसान को रोका जा सके |
इस क्रम में अरुणोदय संस्थान ने इस वर्ष रवि सीजन में अपने क्षेत्र मेंकिसानों को 96 बीघे भूमि में प्राकृतिक खेती करवाने का कार्य किया है जो पूर्णतया प्राकृतिक खाद एवं प्राकृतिक कीटनाशकों के आधार पर की जा रही है। इस संदर्भ में जब संस्था के निर्देशक अभिषेक मिश्रा से जानना चाहा कि उनके मन में प्राकृतिक खेती का विचार कैसे आया तो उन्होंने बताया कि आज किसान आर्थिक कारण से जूझ रहा है उसे रासायनिक खाद भी आसानी से नही मिल पा रही है जिसके बदले में उसे भारी मोटी रकम चुकानी पड़ती है।
पर्यावरण नुकसान के रूप में मानव रस के रूप में उसे भारी कीमत चुकानी पड़ रही है असाध्याय बीमारियां उसे जन्म से ही घेर लेती है जिसका निदान वह अपने जिंदा रहते नही कर पाता, जिसको देखते हुए हमने प्रत्येक किसान से एक गाय पालने का आग्रह किया है एवं प्राकृतिक खेती के द्वारा आर्थिक नुकसान को रोकने का प्रयास हमारी संस्था पिछले 10 वर्षों से कर रही हैं , सजिसमें हम किसानों को प्राकृतिक खेती करने का तरीका उन्हें प्राकृतिक खाद प्राकृतिक यूरिया एवं प्राकृतिक कीटनाशक बनवाकर उन्हें रासायनिक जहर से मुक्ति दिलाने का कार्य कर रहे हैं ।