मुंगेसर के फूल

मोर गियां ह खोपा म खोंचे हे मुंगेसर के फूल।

बारी घुमेला जावत हे, कान म झूलत हे झूल।।


तरी दिखे पिंयर-पिंयर, आगु जामुनी पंखुरिया।

लमरी-लमरी फरे हवय, हरियर-हरियर बीजा।।


फुरफुंदी अउ तितली मन उड़ावैंय बनके सहेली।

ममहावत हे मोंगरा असन, भौंरा पुछत हे पहेली।।


पुरवर्ई म डोले पातर कनिहा, संग म झूमरे पाना।

लाली चोंच वाले सुआ ह मया के गावत हे गाना।।


चिरई-चुरबून मन बिकट नाचत हें फूदुक-फूदुक।

साँप ह बिला ले निकल के धिड़काथे बाजा गुदुम।।


कोयली अउ मैना घलोक पिरीत के टेही अलापे।

अपन मयारू परानी के बिसरना ह नगत बियापे।।


आँसू ढरकावैंय चरोटा, चेंच, बोरझरिया, ढनढनी।

बोम फार के रोवत हें तीर म कांदी, गोंदा, बेमची।।


कवि- अशोक कुमार यादव मुंगेली, छत्तीसगढ़

जिलाध्यक्ष राष्ट्रीय कवि संगम इकाई