अब ओल्ड पेंशन रह जाएगी सपना!

राजस्थान और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस सरकार गई, भाजपा तो मानेगी नहीं

लखनऊ। ओल्ड पेंशन स्कीम तो अब सपना ही रह जायेगी। ओपीएस समर्थक रही राजस्थान और छत्तीसगढ़ की कांग्रेस सरकार तो गईं और बीजेपी मानने वाली नही है। अटलजी की सरकार में बंद हुईं थी ओपीएस, बीजेपी से ही लागू किये जाने की उम्मीद असम्भव भले न हो लेकिन मुश्किल जरूर है  हिमाचल और कर्नाटक में कांग्रेस को शानदार जीत मिली थी।यहां के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने ओल्ड पेंशन स्कीम को जोरशोर से उठाया था। कांग्रेस को लग रहा था, ये मुद्दा सरकारी कर्मचारियों और उनके परिवारों को पाले में ला सकता है लेकिन हालिया चुनाव नतीजों ने सोच बदलने को मजबूर कर रही है। 

अभी हुए 5 राज्यों में विधानसभा चुनावों में भी ओपीएस को कांग्रेस ने इस्तेमाल किया,लेकिन हिंदी बेल्ट के तीन राज्यों मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ के जनादेश ने ओपीएस के राग को अनसुना कर दिया। हिंदी बेल्ट के तीनों राज्यों में बीजेपी को बंपर जीत मिली है। तीन राज्यों में दो में कांग्रेस की सरकारें थीं। यहां चुनाव में ओपीएस बड़ा मुद्दा था। राजस्थान और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस ओपीएस लागू करने का ऐलान था, बकायदा नोटिफिकेशन भी जारी हो गया था। मध्य प्रदेश में कांग्रेस नेतृत्व लगातार ये नारा दे रहा था कि राज्य में कांग्रेस की सरकार बनते ही सबसे पहले सरकारी कर्मचारियों को ओपीएस का तोहफा दिया जाएगा। 

लेकिन चुनावी नतीजों से तो यही लग रहा है कि जनता ने ओपीएस को भाव ही नहीं दिया।देश में सबसे पहले अप्रैल 2022 राजस्थान की अशोक गहलोत सरकार ने अपने यहां ओपीएस लागू करने का ऐलान किया था। गहलोत इस मुद्दे को लेकर फ्रंट फूट खेल रहे थे, लगातार चुनावी सभाओ में वो कह रहे थे कि कांग्रेस पार्टी ने गारंटी दी है कि दूसरी बार सरकार बनते ही कर्मचारियों के लिए राजस्थान में ओपीएस को कानून के जरिए पक्का कर दिया जाएगा।

राजस्थान में नौ से दस लाख सर्विंग,रिटायर्ड कर्मचारी हैं, उनके परिवार भी हैं जिन्हें गहलोत साध रहे थे। चुनाव से पहले एक पत्रकार वार्ता में गृह मंत्री अमित शाह ने कहा था कि हमने ओपीएस पर कमेटी बनाई है।कमेटी के सुझाव पर गौर करेंगे, इस बयान पर पलटवार करते हुए अशोक गहलोत ने कहा था, शाह जी कमेटी नहीं, कमिटमेंट चाहिए। गारंटी चाहिए,हम गारंटी दे रहे हैं।राजस्थान में कांग्रेस ने सात चुनावी गारंटियों में पुरानी पेंशन स्कीम को कानूनी गारंटी का दर्जा देने के लिए पहले नंबर पर रखा था। 

राजस्थान से कांग्रेस सरकार की विदाई हो चुकी है।अब बीजेपी तो मानेगी  नही। छत्तीसगढ़ में कांग्रेस पार्टी की महासचिव एवं स्टार प्रचारक प्रियंका गांधी रैलियों में श्ओपीएसश् के मुद्दे को उठा रही थी। छत्तीसगढ़ में कांग्रेस सरकार ने 1 अप्रैल 2022 से ओपीएस लागू करने का नोटिफिकेशन जारी किया था। ओपीएस लागू करने वाली राज्य सरकारें लगातार केंद्र से एनपीएस में जमा उनके राज्यों के कर्मचारियों के पैसे मांग रहे थे लेकिन केंद्र ने फंड देने से साफ इनकार कर दिया। 

छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने केंद्र सरकार को चेतावनी दी थी कि उसके पास फंसी राज्य के कर्मचारियों के पेंशन की 17 हजार 240 करोड़ रुपये की राशि को वे हर हाल में लेकर रहेंगे।ओपीएस लागू करना किसी भी राज्य के लिए आसान नहीं होगा।। इससे सरकारी खजाने पर बोझ बढ़ जाएगा। केंद्र से इजाजत की जरूरत होगी। कुछ गैर बीजेपी शासित राज्यों ने ओल्ड पेंशन स्कीम को बहाल करने का फैसला किया है जिसमें राजस्थान, छत्तीसगढ़, पंजाब, झारखंड और हिमाचल प्रदेश अहम हैं।

लेकिन अब राजस्थान और छत्तीसगढ़ में बीजेपी सरकार आ गईं । बीजेपीओपीएस के पक्ष में बिल्कुल नहीं है। बाकी राज्यों में भी ओपीएस दांव में सियासी पेंच फंस सकता है। एनपीएस का पैसा केंद्र सरकार के पास जमा है। वह पैसा कर्मियों का है, लेकिन बिना केंद्र की सहमति के उसे राज्य सरकार को ट्रांसफर नहीं किया जा सकता। ओपीएस को अगर राज्य में कानूनी दर्जा मिल भी गया तो इस बात की कोई गारंटी नहीं कि किसी दूसरे दल की सरकार उस कानून को निरस्त नहीं करेगी। 

कानूनी दर्जे की खास अहमियत नहीं रह जाएगी,जिसका  उदाहरण जल्द ही राजस्थान और छत्तीसगढ़ में देखने को मिलेगा। भारतीय रिजर्व बैंक आरबीआई ने ओपीएस को लेकर स्टडी की है।आरबीआई की रिपोर्ट के हिसाब से अगर देश में एनपीएस की जगह ओल्ड पेंशन स्कीम को लागू किया जाता है, तो सरकारी खजाने का बोझ 4.5 गुना बढ़ जाएगा। इसके कारण सरकारी खजाने पर पड़ने वाला बोझ बढ़कर 2060 तक जीडीपी का 0.9 फीसदी तक पहुंच सकता है।केंद्रीय बैंक के मुताबिक।ओपीएस को बहाल करने से राज्यों की वित्तीय हालत पर भी असर होगा और ये खराब हो सकती है।

सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी के मुताबिक जिन राज्यों में पेंशन में योगदान के लिए वहां की सरकारें खर्च करती हैं। वह एनपीएस लागू करने के समय यानी 2004 में उनके रिवेन्यू का 10 प्रतिशत था जबकि 2020-21 में बढ़कर ये 25 फीसदी हो चुका है। जो 5 राज्य एनपीएस से ओपीएस पर लौटने का फैसला कर चुके हैं, उनका बोझ और बढ़ेगा।

भारतीय स्टेट बैंक ने अपनी मासिक रिपोर्ट इकोरैप अक्टूबर 2022 में कहा था कि अगर सभी राज्य ओपीएस पर लौट जाते हैं, तो सरकारी खजाने का बोझ 31.04 लाख करोड़ रुपये हो जाएगा। सिर्फ तीन राज्य छत्तीसगढ़, झारखंड और राजस्थान के सरकारी खजाने पर कुल 3 लाख करोड़ रुपये का बोझ आएगा। योजना आयोग के पूर्व उपाध्यक्ष मोंटेक अहलूवालिया ने पुरानी पेंशन स्कीम को लेकर कहा था कि कुछ राज्य सरकारों द्वारा पुरानी पेंशन योजना को फिर से शुरू करना वित्तीय दिवालियापन की रेसिपी है।

ओल्ड पेंशन स्कीम के तहत रिटायर्ड कर्मचारी को अनिवार्य पेंशन का अधिकार मिलता है।ये रिटायरमेंट के समय मिलने वाले मूल वेतन का 50 फीसदी होता है यानि कर्मचारी जितनी बेसिक-पे पर  नौकरी पूरी करके रिटायर होता है, उसका आधा हिस्सा उसे पेंशन के रूप में दे दिया जाता है। रिटायरमेंट के बाद कर्मचारी को वर्किंग एंप्लाई की तरह लगातार महंगाई भत्ता समेत अन्य भत्तों का लाभ भी मिलता है। अगर सरकार किसी भत्ते में इजाफा करती है, तो फिर इसके मुताबिक पेंशन में बढ़ोतरी देखने को मिलेगी।

 वही 2004 से लागू हुई नई पेंशन स्घ्कीम एनपीएस का निर्धारण कुल जमा राशि और निवेश पर आए रिटर्न के अनुसार होता है। इसमें कर्मचारी का योगदान उसकी बेसिक सैलरी और डीए का 10 फीसदी कर्मचारियों को प्राप्त होता है,इतना ही योगदान राज्य सरकार भी देती है।

 1 मई 2009 से एनपीएस स्कीम सभी के लिए लागू की गई।पुरानी पेंशन योजना में कर्मचारी की सैलरी से कोई कटौती नहीं होती थी। एनपीएस में कर्मचारियों की सैलरी से 10 फीसदी की कटौती की जाती है। पुरानी पेंशन योजना में जीपीएफ की सुविधा होती थी, लेकिन नई स्कीम में इसकी सुविधा नहीं है। 

पुरानी पेंशन स्कीम में रिटायरमेंट के समय की सैलरी की करीब आधी राशि पेंशन के रूप मिलती थी, जबकि नई पेंशन योजना में निश्चित पेंशन की कोई गारंटी नहीं है। पुरानी पेंशन एक सुरक्षित योजना है जिसका भुगतान सरकारी खजाने से किया जाता है। नई पेंशन योजना शेयर बाजार पर आधारित है जिसमें बाजार की चाल के अनुसार भुगतान किया जाता है।