कविता में ढल जाने दो

रहने दो मत छेड़ो "दर्द" को

इसे मन में ही रह जाने दो ,

कुछ किस्से तुमसे कहती हूं

कुछ अनकहा भी रह जाने दो,


हर आंसू की अलग कहानी

सबकी टीस अलग है मन में ,

कुछ पन्नों पर मैं लिख दूंगी

पर थोड़ा सा सह जाने दो !!


माना, बुद्धू सा मन ये नादां है

संग-संग थोड़ा अज्ञानी भी ,

मन की बातें मन ही जानें, पर

कुछ उसको भी कह जाने दो !!


यह जीवन तो आना-जाना है

कहां भरोसा एक पल का भी ,

आओ शब्दों का सार बनाकर

उनको कविता में ढल जाने दो !!


नमिता गुप्ता "मनसी"

मेरठ, उत्तर प्रदेश