करो कृपा भगवन मेरे,
हो जाये निज मन ज्ञान |
क्रोध मोह से दूर रहूँ,
दे दो ऐसा वरदान ||
दीपक सम जग में रहकर,
फैलाऊँ मैं उजियार |
तम की छाती चीर सकूँ,
दे दो ऐसा हथियार ||
चले कलम जब भी मेरी,
लिखूँ सदा मैं गुणगान |
ईश भक्ति से ही मानव,
बढ़ता जग में फिर मान ||
मीठी वाणी ही बोलूँ,
घोलो रसना अवनीश |
सबके मन में राज करूँ,
करो कृपा मम जगदीश ||
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कवयित्री
कल्पना भदौरिया "स्वप्निल "
लखनऊ
उत्तरप्रदेश