किसे बनाएं राष्ट्रीय पशु?

आजकल मुझे अपने आप पर सहसा गर्व होने लगा है कि‍ मेरा मस्‍ति‍ष्‍क कतने धांसू वि‍चारों को जन्‍म देता है। मेरे ख्‍याल से मुझे कि‍सी बड़े पुरस्‍कार से सम्‍मानि‍त कि‍या जाना चाहि‍ए।

     तो मेरे धांसू दि‍माग का धॉंसू ख्‍याल सुनि‍ये ! हमारी सरकार चीखती है- वनों की रक्षा करो – लुप्त होती वन संपदा को बचाओ, वनपशुओं की रक्षा करना हमारा परम कर्त्तव्‍य है आदि‍। वैसे हमारा राष्‍ट्रीय पशु सि‍ह या शेर है, जि‍सकी नस्‍ल का भारत में अभाव हो रहा है। अवैध रुप से जि‍स तरह लोगों ने जंगलों की कटाई शुरु कर दी है, शि‍कार करके ठीक उसी तरह सिंह को दुनि‍यां से खदेड़ रहे हैं।    

     हां तो असली मुददे पर लौट आएं। सिंह या शेर लुप्‍त वंशी हो रहे हैं। जब राष्‍ट्रीय पशु ही नहीं रहेगा तब राष्‍ट्र का अस्‍ति‍त्‍व बेमानी होने की संभावनाएं बढ़ जाएंगी। हम सिंहों के वंश को संसार की जनसंख्‍या की तरह बढ़ा तो सकते नहीं – तो ऐसा क्‍यों न करें कि‍ राष्‍ट्रीय पशु पद से उसे उतारकर कि‍सी और पशु को इस पद पर बि‍ठायें। वैसे भारत की जनता कुर्सि‍यों पर शख्‍सों को बदलना खूब जानती है।

     इसे उठाकर उसे बि‍ठाये – यह रवैया स्‍वस्‍थ्‍य मानसि‍कता का द्योतक है क्‍योंकि‍ परि‍वर्तन ही जीवन है। परि‍वर्तन न हुआ तो मानव और पाषाण में अंतर क्‍या रह जाएगा? सो परि‍वर्तन की इस स्‍वास्‍थ प्रक्रि‍या के फलस्‍वरूप हमें चाहि‍ए कि‍ पदस्‍थ का परि‍वर्तन कि‍या जाए। वैसे कुर्सी से चि‍पके लोग अपनी जी तोड़ कोशि‍श करते हैं कि‍ कुर्सी न छि‍न जाए----लेकि‍न जहां अल्‍पमत बहुमत का प्रश्‍न है तो राष्‍ट्रीय पशु सिंह ने प्रभावशाली बहुमत खो दि‍या है।

     प्रश्‍न सहज है कि‍ अब सिंह की कुर्सी पर कि‍से बि‍ठाया जाये? उत्तर में नगर सिंह-श्‍वान या चलते शब्‍दों में ‘कुत्ता’ होगा। जी हां--- कुत्ता एक ऐसा पशु है जि‍सकी नस्‍ल की समाप्‍ति‍ का प्रश्‍न ही बेमानी है।

     दूसरा कुत्ता हमारी वर्तमान मानसि‍क प्रवृत्ति‍ का द्योतक – प्रतीक भी है। आप कोई भी हों, जरा सा पुचकारे नहीं कि‍ कि‍तनी खूबसूरती से अपनी टेढ़ी दुम हि‍लाता हुआ आ पहुंचता है। उसे रंग-भेद जाति‍ भेद से क्‍या लेना? जि‍सने पुकारा उसी का हो गया – ठीक हमारे दल बदलू राजनीति‍ज्ञों की तरह। वैसे ही जैसे कोई कर्मचारी हो अथवा कि‍सी पार्टी के छुटपुट से लेकर महामहि‍म सदस्‍य जो कि‍सी के अधीन हैं – जरा सा डांटा, पैरों पर लेट गया-तो यह उसकी एक ऐसी देन है वर्तमान युग के सामयि‍क प्रवृत्ति‍ पालते मानव के लि‍ये कि‍ उसे वि‍स्‍मृत नहीं कि‍या जा सकता।

     कुत्ता--- एक ऐसा जानवर है कि‍ जि‍से शास्‍त्रों ने भी नहीं छोड़ा। ‘श्‍वान नि‍द्रा बको ध्‍यानं’ यानी कुत्ते जैसी नींद होनी चाहि‍ए। जरा खड़का हुआ कि‍ उठकर सचेत हो जाता है – ठीक वि‍पक्षी नेताओं की तरह। कुत्ते को बुद्धि‍ के मामले में उल्‍लू कहना ठीक इसलि‍ए होगा क्‍योंकि‍ बि‍ना सोचे वि‍चारे वह कहीं भी पूछ हि‍लाते पहुंच जाता है। चाहे कोई रोटी दे या डंडे की मार। बडा गुण कुत्ते में यह है कि‍ वह बुरा नहीं मानता। आप गाली दीजि‍ये या पि‍टाई कर दीजि‍ये, दूसरे ही क्षण सब कुछ धूल की तरह झाड़ते हुए आपके आस-पास लौटेगा इस तरह की बि‍ना रीढ़ की हड्डी वाली प्रवृत्ति‍ युग के मानव में नहीं है?

     अब साहि‍त्‍य में ही देखि‍ये – सिंह या शेर को लेकर दो ही मुहावरे प्रचलि‍त हैं शेर के मुंह में हाथ डालना, शेर और बकरी एक घाट पर पानी पीना जि‍नका वक्रोक्‍ति के अनुसार वि‍शेष महत्‍व कहां? जबकि‍ ग्राम्‍य सि‍ह से जुड़ी कहावतों के भंडार से सजे हुए हैं।

     हमारी कार्यपालि‍का के लि‍ए एक उदाहरण क्‍या पर्याप्‍त नहीं – ‘कुति‍या चोरों से मि‍ल गई पहरा कि‍स का दे’? ‍ कई बुजुर्ग राजनीति‍ज्ञ आजकल ‘कुत्ता काटने’ वाली प्रक्रि‍या से गुजर रहे हैं। कुत्ते की दुम जैसी तुच्‍छ चीज भी अपने सि‍द्धांत की पक्‍की है वरना लोग क्‍यों करते ‘कुत्ते की दुम बारह बरस नली में रखी जाए फि‍र भी दुम टेढ़ी की टेढ़ी। कुत्ता अपनी दुम झाड़ कर बैठता है। 

वाह सफाई पसंदगी ! वाह विपक्षी ‘कुत्ते की नींद’ में ही रहते हैं। चॉंस मि‍ला की नहीं पि‍ल पड़े यह बात और है कि‍ ‘कुत्ते के भौंकने से हाथी नहीं डरते’। कुत्ते की एनर्जी सारी भौंकने में खत्‍म हो जाती है फि‍र सक्रि‍यता क्‍या खाक बचेगी आप ही कहि‍ए। 

‘कुत्ते को घी हजम नहीं होता’ क्‍योंकि‍ वह तेल लगाने में अधि‍क वि‍श्‍वास जो करता है। कुत्ते ने जो इतने सारे मुहावरे साहि‍त्‍य को दि‍ये, सिंह या शेर ने नहीं। क्‍या इतने सारे गुण सि‍ह में हैं? हो सकते हैं? नहीं----बि‍ल्‍कुल नहीं। इस सर्वगुण संपन्‍न कुत्ते को यदि‍ हम राष्‍ट्रीय पशु न बनायें तो गुणों की खान कुत्ते के वंश के प्रति‍ अन्‍याय होगा। आशा है आप मेरी बात से सहमत होंगे कि‍ अब तो हमारा राष्‍ट्रीय पशु कुत्ता होना चाहि‍ए।

डॉ0 टी0 महादेव राव

विशाखापटनम (आंध्र प्रदेश) 9394290204