लघुकथा:- अच्छे संस्कार

मानसी ओ मानसी सुबह का चाय क्या दोपहर में पिला रही हो हमें। सब्र कीजिए मम्मी बस ये ले आए आपकी सुबह-सुबह की गरम चाय, लिजिए। हमें तो लगा अब हमें चाय सीधा खानें के समय मिलने वाली है। पता नहीं कैसे संस्कार देकर भेजें है। तुम्हारे माता-पिता ने तुम्हें। हम भी कभी बहू थे। सुबह के छ: बजते ही अपने सास ससुर के हाथों में गरम गरम चाय की प्याली पकड़ा देते थे।

तब दूसरा काम करते। और आजकल की बहूऐं उठती ही सात बजे है। और आठ बजे किचन में आती हैं। अब हम लोग ठहरे बुजुर्ग लोग क्या उम्मीद कर सकते हैं। आज के जनरेशन से हमने जो सिखाया वो तो कही नजर ही नहीं आता।अब बात बहू की करूं या बेटी की जो संस्कार मां -बाप ने दिए। उसे साइड कर डिजिटल दुनिया के संस्कार पकड़ कर चलती हैं। और सब डामाडोल कर जाती हैं।

पता नही कब समझेंगे ये बच्चे समय की कीमत को। समय रहते अगर हर कार्य कर लिया जाए तो, दोगुना लाभ होता है।

लेकिन इन्हें लाभ और फायदा से कोई फायदा नहीं। बल्कि उल्टा अपने स्वास्थ्य के प्रति लापरवाही बरतते है।

अगर इनसे कुछ कह दिया तो इनका गुस्सा सातवें आसमां पर होता है। हर बात हमारी इन्हें बुरी लग जाती हैं। अभी हम जिन्दा है तो समझा देते हैं। कल को अगर हम ना रहे, तो इनके तौर -तरीके देखकर लेट -लतीफ कार्य देखकर सबके सामने हंसी का पात्र ही बनेंगे। कोई इनकी गलतियां देखकर हमारे जैसे समझा नहीं रहा होगा।

बल्कि मज़े ले रहा होगा।

मानसी दरवाजे की ओट पर यह सब बातें सुन रही होती हैं। तभी मानसी के ससुर कहते हैं। अरे छोड़ो भी क्या बातें लेकर बैठ गई हो तुम भी। यामिनी तभी मानसी आप अपने सास-ससुर के सामने सर झुकाए खड़ी होकर कहती हैं। मम्मी जी आपकी एक-एक बात सोने जैसी खरी है।

आपने कभी भी मेरी हरकतें देख मुझे बुरा -भला नहीं कहा शाय़द इसलिए मेरा हर कार्य लेट -लतीफ होता चला गया।

मुझसे अब तक जो भी गलती हुई है उन सब गलतियों के लिए क्षमा प्रार्थी हूं। मम्मी जी। यामिनी एकटक अपनी बहूं को निहारती रहती हैं। तभी यामिनी के पति यानि की मानसी के ससुर जी कहते हैं।

लो बताओ बिना बहस बिना किसी तोड़ मरोड़ के अपनी अपनी बातें कितनी समझदारी से एक दूसरे को समझा दी।

ऐसी सांस बहूं की जोड़ी तो कही नहीं देखी मैंने।

दोनों शांत मुद्रा में हंस पड़ते हैं। मानसी फिर क्षमा मांगते हुए कहतीं हैं, मम्मी जी अब आपका चाय,चाय नाश्ता ही नहीं कुछ भी ग़लत समय पर नहीं होगा।

तभी यामिनी कहतीं हैं।देखा मैं ना कहती थी। कितने अच्छे संस्कार हैं मेरे बहूं के।

जुग जुग जियो बेटा अपनी घर-गृहस्थी बहुत अच्छे से सम्हालो तुम।।

निर्मला सिन्हा(स्वतंत्र लेखिका)

ग्राम जामरी डोंगरगढ़ छत्तीसगढ़