नफरतें

नफरतें जिंदगी बर्बाद करती है

ये तो दुश्मनी का सैलाब लाती है

मिट जाते हैं न जाने देश कितने

कितनी इमारतें खंडहर बन जाती है 

इन्द्रधनुष सी रंग-बिरंगी दुनिया को 

श्याम बदरिया आकर ढ़क जाती है

नफरतों के पहाड़ पर तीर तलवार से

प्रकृति की सुंदरता भी झुलस जाती है 

अरे दुनिया की इस पावन भूमि में

नफरतों के बीज किसने क्यूं बोये है 

वटवृक्ष बनकर आगे यह बीज ही

आंसुओं की लंबी लडी बन जाती है

प्यार व नफ़रत को तौलकर देखना

नफरतों में बहे खून का रंग देखना

एक मां कैसे बेटे का ग़म उठाती है 

अपनों की मौत आईना दिखाती है 


स्वरचित एवं मौलिक

अलका शर्मा, शामली, उत्तर प्रदेश