लिखूं मैं नारी व्यथा

लिखूं मैं नारी व्यथा

ऐसी नहीं अब कोई अबला है।

छिपे इतिहास जब से आए सामने है।

बनी हर एक नारी योद्धा हैं।

              लक्ष्मीबाई, पदमनी, पन्नाधाय की वंशज हैं।

              ये जबसे इन्हें ये पता चला है।

              हाथों की चूड़ियो को भी हथियार समझा है।

लिखूं मैं नारी व्यथा

ऐसी नहीं अब कोई अबला है।

              विपत्तियों से घबरा जाए, नहीं ऐसी

              डरपोक ये,विनाश को भी मात दे दे।

              हैं ऐसी अब ये चंडी ये।।

लिखूं मैं नारी व्यथा

ऐसी नहीं अब कोई अबला है।

               सवर्त्र त्याग कर रण में कूद जाती है।

               अपनों के लिए सर्वन्यौक्षावर कर जाती हैं।

लिखूं मैं नारी व्यथा

ऐसी नहीं अब कोई अबला है।.... निर्मला की कलम से 

निर्मला सिन्हा (स्वतंत्र लेखिका)

ग्राम जामरी डोंगरगढ़ छत्तीसगढ़