जीवन मे मां

उंगली पकड़ कर

चलना सिखाया

जब-जब गिरा तब

तुमने उठाया

घुटने पर जब लगी

चोट मुझको

फूंक मारकर चोट

का दर्द भगाया

अपने कदमों पर

मुझे चलाकर "माँ"

नन्हें से कदमों को खूब

भगा कर थका हुआ

जब भाग कर और

हंसकर गोद में ने

तुमने उठाय।

तुम्हारी जुबान "माँ"बनी

मेरी बोली

तुतलाती जुबान से

तुम करती ठिठोली

अम्मा,बाबा,मामा

जब भी मैं बोला

मुझे सारे शब्दों का

एहसास कराया।

वर्णमाला का मुझे

जान दिलाकर

जमा,घटा,गुणा,भाग पहाडे

सिखा कर

अंग्रेजी के अक्षरों को

जोड़ना सीखकर

मुझे शिक्षा का तुमने

सब पाठ पढ़ाया।

बढ़ता रहा मैं तेज

कदमों से चलता रहा मैं

कभी कभी अंधेरों से

डरता भी रहा मैं

अंधेरों से मुझको लड़ना

सीखा कर

मुझे संभाला,मेरे डर को

मार भगाया

सपनों को मेरे तुमने माँ

आधार बनाकर

मतलबी दुनिया में जीना

सीखा कर

मुझसे  तुमने थोड़ी सी

दूरी बनाकर

खुले गगन में मुझे

उड़ना सिखाया

कमरे की खिड़की से से

जब झाँकता हूँ

तारों की दुनियाँ में "माँ"

तुम्हें ताकता हूँ

बंद आंखों में रहती है

सूरत तुम्हारी

तुम्हारा छोटा सा

जुगनू हूँ मैं

तुम्हारी ही बातों को

लोरी बनाकर माँ

तुम्हारे तुम्हारे बिना

अकेला सोया भी हूँ मैं

रात कटती है करके

तुमसे चंद बातें माँ

पढ़ाई के आलम में

खोया हूं मैं

मेरी छोटी छोटी चीजों का

ध्यान रखती

ममता का मुझ पर माँ

तुम हाथ रखती

हर बात को मुझे प्यार से

समझाती हो तुम

आज भी तेरे आंचल में

छुपाता हूँ मैं।

यह दुलारना और थपथपाना

तुम्हारा माँ नए रूप में

मुझे रोज ढालता है

कुंभकार बनकर जो मुझे

संभालती हो

वरना मिट्टी के सिवा क्या हूं मैं।


सरिता प्रजापति,वरिष्ठ कवयित्री

एवं शिक्षिका,नई दिल्ली

9811526274