नव पल्लव से सुरभित वल्लरी,
चंचल पवन संग इतराए,
कोमल हरित वसन में शोभित,
देख मधुप को हर्षाये।
झूम झूम कर गीत अनोखा
पी मिलन का गा रही,
चंचल चपला चितवन,
सबके उर को भा रही।
सुरभित कुसुम आसक्त हुआ,
वल्लरी की मुस्कान पर।
शांत धीर गंभीर था वो,
खिला लता के आह्वान पर।
चंचल नयन कह जाये,
मूक अधर के बोल।
जीवन में रहो खुश सदा
जीवन है अनमोल।
डॉ.रीमा सिन्हा (लखनऊ )