अच्छा हुआ हम वैसे नहीं हैं

 दक्षिण के किसी चर्चित फिल्म अभिनेता के निधन पर दो ‘पहुंचे’ हुए अभिनेता आपस में फोन पर बातचीत कर रहे हैं-

“हेलो! सुना क्या? साउथ का कोई हीरो मर गया है। अभी-अभी टीवी पर समाचार देखा। सुनकर बड़ा दुख हुआ।“

“हां-हां मैंने भी देखा। वह तो बड़ा सुपरस्टार था। लोगों में उसकी अच्छी खासी फैन फॉलोइंग है।“

“होगी भी क्यों न? बंदे ने काम ही ऐसे किए थे। अनाथाश्रम, पाठशालाएँ, गौशालाएँ, मुफ्त भोजन व्यवस्था, जरूरतमंदों की सहायता जो करता था। हमेशा जनसेवा का भूत उसके सिर पर सवार रहता था।“

“यह तो बहुत बुरा हुआ। क्यों न हम भी उसके दुख में शामिल हो जाएँ। एक कंडोलेंस वाला ट्वीट तो कर ही सकते हैं। वरना दुनिया क्या सोचेगी?”

“अरे! कहीं तू पागल तो नहीं हो गया? ट्वीट करने के चक्कर में कहीं ट्रोल-व्रोल हो गया तो लेने के देने पड़ जाएंगे। ऊपर से बेइज्जती अलग होगी।“

“अरे भाई! तू दो-चार गुटखों के विज्ञापन में है और मैं दो-चार शराब वाले में। अगर ऐसे में कोई ट्वीट कर देते हैं तो लोग हमारी खूब खिंचाई करेंगे। जनसेवा तो दूर हमने बिना मतलब के आज तक किसी को घांस तक नहीं डाली है। यह सोचकर ही मेरे रोंगटे खड़े हो जाते हैं।“

“हां यार! तू सही कहता है। भूल गया क्या लॉकडाउन में ऐसे ही किसी अभिनेता ने हमारी पतलून ढीली कर दी थी। उस पर जनसेवा का ऐसा भूत सवार हुआ कि हमारा घर से निकलना दुश्वार हो गया था। ऊपर से मीडिया वालों की किच-किच अलग से।“

“सही कहता है तू! सबसे अच्छा चुपचाप बैठो। दुनिया से कन्नी काट लो। दो-चार दिन बाद मामला ठंडा पड़ जाएगा। क्यों फालतू मे मुसीबत मोल लें। जैसा चल रहा है वैसा चलने दो। मानवता को मारो गोली। चुपचाप पड़े रहो एक कोने में।“

इतना कहते हैं दोनों ने फोन रख दिया।      

डॉ. सुरेश कुमार मिश्रा ‘उरतृप्त’, मो. नं. 73 8657 8657