जाता हुआ दिसंबर
मानों हड़बड़ी में
अनमना सा कोई बालक चला जा रहा हो
बगैर चप्पल पहने ही,,किसी जल्दी में !!
जाना ही है..जाना तो पड़ेगा ही..
किसी जाते हुए को रोक सकने का
कोई विकल्प है भी कहां,, नहीं न !!
सुनो..
बर्फो के गिरने से ठीक पहले की शांति के साथ..
झीलों के जमने से कुछ देर पहले की
पानी से दो-टूक बात की तरह..
'बीतने' से पहले विदाई के 'वो क्षण'
जब अवरुद्ध गला कह न सके
एक भी शब्द,, हां, एक भी शब्द,,,
तुम रखकर जाना अपनत्व की थोड़ी सी गरमाहट
सर्द से ठिठुरी हुई हथेलियों पर ,
दिसंबर, तुम सब समझ रहे हो न
क्या कह रही हूं मैं तुमसे ,
लौट आना तुम अगले बरस
फिर इसी ठिठुरन के साथ ,
बस..ठहर जरूर जाना कुछ देर को !!
नमिता गुप्ता "मनसी"
मेरठ, उत्तर प्रदेश