हां मैं स्त्री हूं...

हां मैं स्त्री हूं, खुलकर मुझे जीने दो

ना रोको मेरी उड़ान मुझे उड़ने दो

अबला तेरी यही कहानी बदलो सोच पुरानी

सज संवरकर मुझे खिलने, चहकने ,महकने दो।।


हां मैं स्त्री हूं, मुझे समानता का अधिकार दो

सोच पुरानी रखते हो तो अब तुम बदल दो

फूल सी खिलूंगी तो महक से जग महकाऊंगी

मरुस्थल सी प्यासी जिंदगी अब मुझे ना जीने दो।।


हां मैं स्त्री हूं, बहन, बेटी मेरे रूप है।

स्त्री का सम्मान जरूरी है क्योंकि 

पुरुष का भी अस्तित्व मेरे होने से ही है।

पर रूह कापंने लगे अगर हो कन्या भ्रूण हत्या

गलत का खंडन कर बंद करो अब सब अत्याचार।।


वरना वह दिन दूर नहीं जब पश्चाताप का क्रदन होगा

हर कोई बेबस अपने आप को महसूस करता होगा।।


✍️ डॉ० प्रेरणा गर्ग दिल्ली