लेख लिखता हूं,
कविताएं लिखता हूं,
व्यंग्य लिखता हूं,
पर कभी पाखंड नहीं परोसता हूं,
परंपरा के नाम पर,
संस्कृति के नाम पर,
धर्म के नाम पर,
जाति के नाम पर,
कला के नाम पर,
पाखंडों, आडंबरों और अंधविश्वास,
जिससे लोग होते ही हैं
आखिर में निराश,
तब तक कर चुके होते हैं
बहुत से धन का सत्यानाश,
इन सबसे दूर होने का
करते नहीं सद्प्रयास,
मैंने कभी नहीं कहा कि
फलां पवित्र रात को अमृत वर्षा होगी,
मैं मानता हूं कि अमृत होते ही नहीं,
जो होते नहीं उस पर चर्चा क्यूं?
किसी भी बात को परखता हूं
करते हुए तर्क,
जो मुझे कर जाते हैं सतर्क,
इस तरह कई लोगों को बचा जाता हूं,
सच्चाई और झूठ की राह दिखा जाता हूं,
इन बेकार की बातों को
ठूंस दिया जाता है बचपन में,
जो घर कर जाता है तनमन में,
फिर लोग खुद से उबरना नहीं चाहते,
बुद्धि और तर्क की राहों से
स्वयं पहल कर गुजरना नहीं चाहते,
यदि आप पाखंड परोस रहे
तो आप पाखंड ढो रहे हैं,
इसके बीज बो रहे हैं,
तब बहुत लोग डर-डर,मर-मर कमाएंगे,
चतुर बैठकर खाएंगे,
आपको बहकायेंगे,
मजे उड़ायेंगे,
उल्टे आप ही को गरियायेंगे,
तभी तो सीधी राह चल रहा
किसी को मैं नहीं कोसता,
मित्रों मैं अम्बेडकरवादी हूं
इसलिए पाखंड बिल्कुल नहीं परोसता।
राजेन्द्र लाहिरी पामगढ़ छग