शहरो से दूर,
जहां धरती का नूर।
जहां पीपल की छांव,
हैं वहीं मेरा गांव।
लोग मेहनत से खूब,
बेईमानी से दूर।
करते खेतों में काम,
नहीं उनको आराम,
जहा तरुवर की छांव,
है वहीं मेरा गांव।
नित्य होते सबेरे,
पकड़े बैलों की डोर,
गाते चलते खेतों की ओर,
जहां दरिया के बीच,
लगी रहती नांव है,
हैं वहीं मेरा गांव।
जहां खेतों में पछुआ,
सुनाता हैं राग,
जहाँ हर ओर सजता है,
जीवन का साज।
जहां बागों में-
कोयल की कहुँ कहुँ,
कौवो की कांव,
वहीं मेरा गाँव।
ऋषी मुनियों की धरती,
जैन तीर्थ क्षेत्र का स्थान
मेरे छोटे से गांव का,
नाम है कहांव,
है वहीं मेरा गांव।
अल्का मौर्या,नवोदित कवयित्री एवं
शिक्षिका,ग्राम-कहाव,पोस्ट-अण्डिला,
थाना- मईल,जिला-देवरिया,उ.प्र.
दूरभाष-9506581776