"मैं हैरान हूँ "

मैं हैरान हूँ यह सोच कर 

किसी औरत ने क्यों नहीं उठायी उँगली ?

तुलसी दास पर, जिसने कहा :

"ढोल, गँवार, शूद्र, पशु, नारी,

ये सब ताड़न के अधिकारी ।


मैं हैरान हूँ

किसी औरत ने

क्यों नहीं जलायी "मनुस्मृति"

जिसने पहनायी उन्हें

गुलामी की बेड़ियाँ ?


मैं हैरान हूँ

किसी औरत ने क्यों नहीं धिक्कारा ?

उस "राम" को

जिसने गर्भवती पत्नी सीता को

अग्नि परीक्षा के बाद भी

निकाल दिया घर से बाहर

धक्के मार कर !


मैं हैरान हूँ यह सोच कर 

किसी औरत ने लानत नहीं भेजी

उन सब को, जिन्होंने

”औरत को समझ कर वस्तु"

लगा दिया था दाँव पर

होता रहा "नपुँसक" योद्धाओं के बीच

समूची औरत जाति का चीरहरण ?

महाभारत में ?


मै हैरान हूँ यह सोच कर 

किसी औरत ने क्यों नहीं किया ?

सँयोगिता, अम्बा - अम्बालिका के

दिन दहाड़े, अपहरण का विरोध

आज तक !


और मैं हैरान हूँ

इतना कुछ होने के बाद भी

क्यों अपना "श्रद्धेय" मान कर

पूजती हैं मेरी माँ - बहनें

उन्हें देवता - भगवान मान कर ?


मैं हैरान हूँ

उनकी चुप्पी देख कर

इसे उनकी सहनशीलता कहूँ या

अन्ध श्रद्धा या फिर

मानसिक गुलामी की पराकाष्ठा ? 

                    

  सुमंगला सुमन

मुंबई, महाराष्ट्र