प्रेम से इतर..

संसार की सारी लिपियां..सारी भाषाएं..

सदैव पक्षपाती ही रहीं मेरे साथ ,

जबकि

हर लिखावट में..हर भाषा में..

कहीं न कहीं..कोई न कोई तो शब्द था ही

"प्रेम" के लिए ,

लेकिन 

मेरी भाषा..मेरी लिखावट..

समझ सकी सिर्फ "इंतज़ार" !!

सुनों..

तलाश रही हूं वो "एक शब्द"

हो जो परे, इन सारी लिपियों से.. भाषाओं से..

सारे संवादों से , 

और प्रेम से इतर भी !!

नमिता गुप्ता "मनसी"

मेरठ, उत्तर प्रदेश