गीत : कितने गीत लिखे मैंने प्रिय, भावों के आकर्षण में,

कितने  गीत लिखे मैंने प्रिय,  भावों  के  आकर्षण में,

किन्तु हृदयतल शुष्क पड़ा है, नहिं भीगा मधुवर्षण में।

सिंधु नेह का सम्मुख प्रस्तुत,

पर विश्वास गगन पर था,

प्रीत सुमन खिलने को आतुर,

पर अभिमान चरम पर था,

इच्छाओं की डोली डगमग,

अश्रु संभालें या मन को,

सकल समर्पण वंदन करता,

पर हठ योग नयन पर था,

साँझ -सवेरे शुचि पावनता, किंतु अग्नि है घर्षण में,

कितने गीत लिखे मैंने प्रिय, भावों के आकर्षण में।

संयम  देता  रहा  परीक्षा,

रैन- दिवस  गतिमान रहे,

बूँद - बूँद से तृप्त धरा पर,

लहरों  का  सम्मान  बहे,

पग पीछे को खींच रहा है,

अमियकलश विश्वासों का,

निर्मलता का संचय सँग ही,

आशा की इक किरण पले,

चेतन भी विश्राम ना लेगा,  ज्योति घटे संघर्षण में,

कितने गीत लिखे मैंने प्रिय, भावों के आकर्षण में।

रिश्तों के कोमल पुष्पों को,

भोले शिशुओं सा पाला,

एक-एक मोती चुन- चुन कर,

गूंथी मनको की माला,

अधरों की मुस्कानीं कितनी,

बार अश्रु से भीगीं हैं,

उलझ गए धागे से धागे,

बन ना सकी मधु यह हाला,

दुःख- सुख जीवन की पूंजी है, धैर्य नेह अपकर्षण में,

कितने गीत लिखे मैंने प्रिय, भावों  के आकर्षण में।

✍️सीमा मिश्रा, बिंदकी फतेहपुर