भूल

धरा पर विचरते

अश्व,लम्वोष्ट,गज,

वहीं एक नन्हा मूषक छिप कर 

जीवन जी लेता।

विशाल हृदया है धरा।

गगन में चील ,गिद्ध,

गरुण पंख फैलाते,

उसी गगन में नन्हा खग

बया भर लेता अपनी उड़ान।

यह है गगन की विशालता।

पयोनिधी पालता अपने उर में,

मच्छ शार्क व्हेल।

नन्ही मीन भी करती

मनमर्जी की अठखेलियां।

यह है पयोनिधी की महानता।

धरा नहीं बदलती स्वयं अपना रूप।

गगन नहीं रखता किसी के

उड़ान की सीमा

जीव का देख आकार

सागर नहीं बदलता अपना खारापन।

सूर्य,चंद्र, तारागन के साथ

नन्हा उड्गन अपना प्रकाश फैलाने का

करता सतत प्रयास।

उसकी चेष्टा पर कोई नहीं

करता प्रहार।

प्रकृति के परिवर्तन को

सब ने किया स्वीकार।

 सबसे बुद्धिमान प्राणी बन

मानव समता का नियम बिसर गया।

जाति ,धर्म, भाषा की

क्यों सीमाएं खींच रहा।

मानव बना, क्या विधाता ने

कोई कर दी बड़ी भूल।


बेला विरदी

1382, सेक्टर-18

जगाधरी (हरियाणा)

8295863204