बेटी होने का दर्द

हंसती खेलती अनामिका दसवीं कक्षा का रिजल्ट लेकर अपने पिता के पास उनके ऑफिस पहुंची। पापा... पापा...मेरा रिजल्ट घोषित हो गया, देखिए.... मैंने कक्षा में टॉप किया है। (फिर मेडल दिखाते हुए)  पापा मुझे प्रधानाचार्या मैम ने कक्षा में टॉप करने पर ये मेडल दिया है। अनामिका खुशी से चहक रही थी। उसके पैर जमीन पर थम नहीं रहे थे। मन में डॉक्टर बनने का सपना लिए अनामिका ग्यारहवीं कक्षा में साइंस स्ट्रीम चुनना चाहती थी। परन्तु अनामिका के पिता के बॉस  पिता पुत्री का वार्तालाप सुन रहे थे।

 वह बिना सोचे समझे बीच में बोल पड़े.....अरे मिश्रा जी बेटी को डॉक्टर बनाने का क्या फायदा, डॉ. की डिग्री हासिल करने में बहुत मेहनत और बहुत पैसा चाहिए। आप इतना पैसा कहां से लगाएंगे, आपकी तनख्वाह भी इतनी नहीं है, फिर दो बेटे भी हैं आपके। उनको पढ़ा लिखा कर कुछ बनाइएगा। अनामिका के पिता को अपने बॉस की बात समझ में आ गयी, और उन्होंने अनामिका को आर्ट स्ट्रीम लेने का आदेश दे दिया।

अनामिका बहुत रोई गिड़गिड़ाई पर पापा नहीं माने। टॉपर का रिजल्ट हाथ में लिए चंचल चिड़िया सी अनामिका खुद को पंख विहीन चिड़िया जैसे असहाय महसूस कर रही थी। उसे लग रहा था, समाज के निर्माण में सहायक बेटियों की इतनी दुर्दशा..... क्या बेटी होना इतना बड़ा गुनाह है?‌  इन्हीं प्रश्नों के साथ आर्ट स्ट्रीम लेकर पढ़ाई करने लगी। इण्टर मीडिएट होते ही मां ने पिता से कहा.... सुनिए जी अब अच्छा लड़का देखकर अनामिका की शादी कर दीजिए, बहुत हुई पढ़ाई लिखाई। डॉक्टर न बन पाने की  कसक दिल में लिए इण्टर करते हुए अनामिका मन ही मन आई. ए.एस. बनने का सपना सजा बैठी थी, पर मां की बात सुनकर एक बार फिर अनामिका अपना सपना टूटने के डर से कराह उठी। जैसे तैसे पिता को मनाकर बी.ए. का फार्म भरवाया और बी. ए. पास हो गई।

उसके बाद यह कहकर शादी  करवा दी गई कि अब जो करना अपने घर जाकर करना । शादी हुई ससुराल पहुंची और ससुराल वालों के सामने अनामिका ने पढ़ाई की इच्छा जाहिर की। तो उत्तर मिला... और पढ़ना था अपने पिता के घर में पढ़ती रहती, शादी क्यों की। अब शादी हो गई है, घर का चौका चूल्हा संभालो। मन मार कर अनामिका घर के कामों में व्यस्त रहने लगी।

इसे बेटी की मजबूरी की मजबूरी कहे या? समाज की दोगली मानसिकता।

डॉ. अलका गुप्ता 'प्रियदर्शिनी'

लखनऊ उत्तर प्रदेश।