अपनी-अपनी तरह..

जब भेज सकते थे हम

एक-दूसरे को 'फूल' 

या 'खत', या कि कोई किताब ,,,

हम मशगूल रहे

अपनी-अपनी अनचाही दुनियाओं में !!


जब हमें बांटने थे

एक-दूसरे के दुख और दर्द ,

या कि शामिल होना चाहिए था

छोटी-छोटी खुशियों में,,,

हम चुप ही रहे !!


अब जबकि नहीं है हमारे पास

"कहने" के लिए कोई भी शब्द ,

न कोई शिकायत..

न ही मन की कोई बात..

बाकी हैं,,,

सिर्फ और सिर्फ कुछ 'कविताएं'

कि महसूस कर सकें एक दूसरे को

एक दूसरे के शब्दों में ,,,


वहां, प्रेम अब भी है

अपने 'अलग ही तरह का' ,

हमने उसको भी जिआ

अपनी-अपनी तरह !!


नमिता गुप्ता "मनसी"

मेरठ, उत्तर प्रदेश