माता का जाने का
हो रहा हे अब वक्त
सबकी माता दुर्गा
हे बहोत हि सक्त
आज हे नवमी
कल हे दशमी
खतम नवरात्रि
रुकना कालरात्रि
आँख मेरी भर आई
कात्यायनी मेरी माई
भक्ती डूब सी थीं गईं
तेरी छाया साथ हे पाई
सुम साम हो गया आलम
ना सुरु ना संगीत संगम
हो रहे थे जो रास मगम
वह सब पड़े हे मायूस
कु, कविता चव्हाण, जलगांव, महाराष्ट्र