नई चीज़ें... नई ढंग से

नेता जी आप सामने बैठे हो इसलिए नहीं ना बोल रहे हैं, पर सच्चाई येई है कि हो तो आप पक्के पहुँचे आदमी। पढ़-लिख नहीं पाए तो क्या हुआ, ऊँच-नीच सब देखी है आपने, अच्छा-बुरा सब बराबर समझते हो, इसमें कोई शंका करे वो अपनी टांग तुड़वाए। पढ़ाई-लिखाई के भरोसे रहते तो आज कहीं ऑफिस में टेबल के नीचे हाथ पसारे बैठे होते तो अपनी जनता का क्या होता। 

सही वक्त पर स्कूल से भाग जाने का निर्णय आपकी दूरदृष्टि का सबूत है। जनता के भले के लिए कुछ करना पड़े, वो सब आपने किया है। राजनीति के आप माने हुए कीड़े हैं और अभी तक किसी माई के लाल ने वो पेस्टिसाइड बनाया नहीं जिसका आप पर असर हो। लोग आपको शोले का गब्बार अवतार यूं ही नहीं मानते हैं, कुछ तो होगा ना ! जब से लक्ष्मी भाभी को ब्याह के लाए हैं, बाकायदा आप ‘लक्ष्मी के धनी’ भी हैं, इसमें भी कोई संदेह करे वो मूरख। 

देश  क्या दुनिया पे निगाह है आपकी, पांच दफे बैंकॉक और दो दफे स्विजरलैंड हो आए हैं। आपसे कोई कुछ छुपाना चाहे तो छुपा ही लेगा, ऐसा कम से कम हमें तो नहीं लगता। अच्छे से जानते हैं ना आपको इसीलिए इज्जत आपोआप दिल में उछालें मारने लगती हैं, वरना कोई किसी को आज फूटी आंख भी देखता है ! नहीं ना ? लेकिन होगा, हमें क्या, हमारे संस्कार कोई आज के हैं ! आपके दद्दा जब लूटमखोरी में फंसे थे तब हमारे दद्दा ने पूरे चौदह साल उनकी जै-जै करी थी, आपको तो पता ही है।

 पर अब तो खूब तरक्की हो गई है, लूटमखोरी खूब हो रही हैं पर फंसने का रिवाज खतम हो गया वरना हम भी अपना पुश्तैनी फर्ज अदा करते। तरक्की तो होनई चइये थी, नहीं होती तो आज जो देश  चला रहे हैं उनमें से ज्यादातर कहीं चक्की पीस रहे होते तो अच्छा लगता क्या? एफडीआई से पूंजी जुटाई जा सकती है, नेता थोड़ी जुटा सकते हैं, वो भी देसी, गुलगुले और मुलायम, सही है ना नेता जी ? 

राजनीति खेल तो है पर बच्चों का नहीं, कि कोई मम्मी की अंगुली पकड़े आए और अंग-बंग चौक-चंग करने लगे मजे में। जब तक आप जैसा वीर न हो हम जैसों को वोटर से आगे कुछ बनने की सोचना भी खतरे से खाली नहीं है। तो बात ये थी नेता जी कि लोग कड़वी दवाई को लेकर अभी भी अटके पड़े हैं। बजट-वजट तो आया-गया, अभी भी कड़वी दवा जैसा कुछ बाकी है क्या ? बात साफ हो जाए तो बड़ा अच्छा हो।

देखा जाए तो नेता जी किसी को मूं लगाते नहीं हैं। लेकिन हमारी बात और है ये तो अब तक आप समझ ही गए होंगे। बोले - बात कड़वी दवा की नहीं सुधारों की है। सरकार चाहती है सुधारों का सिलसिला शुरू किया जाए। जैसे ही अमृतसिद्धि योग आएगा सुधार योग का सिलसिला चालू हो जाएगा। सबसे पहले मीडिया को सुधारना पड़ेगा। जनता को भड़काने या मूर्ख बनाने का काम उसका नहीं है।

 उन्हें राजनीति में  नहीं पड़ना चाहिए। बेरोजगारी, महंगाई की वजह से कोई मरे उन पर ध्यान देने की आवश्यकता नहीं है। ऐसे मुद्दे टीआरपी के काम थोड़े न आते हैं। टीआरपी तो मुखिया बटुआ रखते हैं कि नहीं, आम चूसकर खाते हैं कि काटकर खाते हैं, घंटों-घंटों कैसे काम कर लेते हैं आदि सवाल पूछने से बढ़ता है। लेकिन सरकार को लेकर पूछाताछी करोगे तो मीडिया को महंगा पड़ेगा। शिक्षा में सुधार की जरुरत है, लोग पढ़-लिख कर बेलगाम हो जाते हैं ये नहीं चलेगा।

 साधु संत तय करेंगे कि विश्वविद्यालय  में क्या पढ़ाया जाएगा, तय क्या करेंगे वो खुद ही पढ़ाएंगे। इतिहास सुधारना पड़ेगा, हमलावर हमारे इतिहास नहीं हैं, जिन्होंने मुकाबला किया, हमारे जो वीर लड़े वो हमारा इतिहास है। लोगों का, खासकर महिलाओं का लिबास सुधारना जरूरी है। उनका लिबास ऐसा होना चाहिए कि एक बार कोई देख ले तो दूसरी बार देखने की इच्छा ही नहीं हो। और भी बहुत से सुधार होगें, जिनको भी सुधारने की जरूरत समझी जाएगी, सुधारा जाएगा।

डॉ. सुरेश कुमार मिश्रा ‘उरतृप्त’, चरवाणीः 7386578657