संग - साथ हरदम रहता
चिर यौवन सा मुखित होता।
उर पंजर के कण-कण में
दिग दिवस सा सस्मित होता।।
स्वप्न - परियों की गाथा गुनता
मन मेरा अंतहीन अंधेरे बुनता।
तरसे जीवन का गहन सार
मेरी पीड़ा है, मेरा मीत राग।।
झड़ता बसंत उर दृगों से
संवेदनाओं के धूमिल पलों से।
मधु क्षार का बनता विलाप
मेरी करुणा मेरा प्रलाप।।
जलते नैनों में खेलती पुतलियाँ
उड़ती अचंभित पुष्पों पर अधीर तितलियाँ ।
याद में तेरे कितने स्वप्न छूट जाते
हृदय के घाव सिर्फ तुम्हें बुलाते ।।
-वंदना अग्रवाल 'निराली' लखनऊ