पितृदेव (उल्लाला छंद )

पितरों को सुत पूजते ,करना तर्पण आज है |

देते जब आशीष है, होते मंगल काज है ||


कागा बनकर बोलते, तू ही मेरा रूप है |

मरकर जीवित है सभी, पाया दिव्य अनूप है ||


सुंदर देखो रीति ये, करे आत्म विस्तार है |

पितर पक्ष के श्राद्ध से, होते भव से पार है ||


पैनी पहने दें रहा, पितरों को जल आज है  |

पिण्डा पारे पूत जब, सारे कृत्य सुकाज है ||


गंगा तर्पण सुत करे, करे भोज विश्वास है |

पुरखे खाये प्रेम से, पावन आश्विन मास है ||


पितृ ऋण को सुत तार के, श्राद्ध कर्म सब कीजिये |

श्रेष्ठ पवित्र इस भाव से, पिंडदान अब दीजिये ||


श्राद्ध करे श्रद्धा सहित, होता सुत वह श्रेष्ठ है |

इच्छित फल उसको मिले,रखता मनवां चेष्ट है ||


तर्पण करते जो सदा, जाते गंगा घाट है |

खुले मोक्ष का द्वार है, नैन निहारे बाट है ||

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कवयित्री 

कल्पना भदौरिया "स्वप्निल "

लखनऊ

उत्तरप्रदेश