ऊंची सोच

ऊंची सोच  जिनकी है होती,

मंज़िल उन्हें ही है मिलती।

दरिया जो डर जाये लहरों से,

बोलो सागर में कैसे वो मिलती।


मन के भाव मन में रह जाये ग़र,

कविता फिर कैसे ये बनती।

सोच पर ही निर्भर हमारा भविष्य,

सोच से ही ज़िंदगी है संवरती।


सकारात्मक सोच मार्ग प्रशस्ता बनती,

ओछी सोच से जीवन नहीं संवरती।

धन वैभव से परे रखते उच्च विचार हैं जो,

जग में उनका होता नाम,सफलता उन्हें ही मिलती।


कर्मपथ पर बढ़ते हुए रखो उच्च विचार,

मानव ये तन हर बार नहीं है मिलती।

विचारों की क्रांति से दूर करो कुरीतियां,

जीवन सकल सार्थक तभी है बनती।


                        रीमा सिन्हा (लखनऊ)