खामोशी अब लफ्ज़ चाहती है

जब दिल में हो इकरार

इज़हार करने को 

खामोशी अब लफ्ज़ चाहती है

जब दर्द हद से बढ़ जाये

करने को बयां

खामोशी अब लफ्ज़ चाहती है

जब दूरियां बढ़ने लगें

सुलझाने को बातें

खामोशी अब लफ्ज़ चाहती है

जब फांसले बढ़ने लगें

पास लाने को

खामोशी अब लफ्ज़ चाहती है

जब नाराज़गी हो दिल में

कहने को बात दिल की

खामोशी अब लफ्ज़ चाहती है

जब चाहतें बिखरने लगें

समेटने को

खामोशी अब लफ्ज़ चाहती है

जब बुझने लगे आस कोई

जगाने को उसे

खामोशी अब लफ्ज़ चाहती है

जब रहे न चाह कभी जीने की

करने को हौंसले बुलंद

खामोशी अब लफ्ज़ चाहती है

हो जीत या हार

हो खुशी या गम

हो प्यार या तकरार

हो सुलह या कलह

हो नज़दीकीयां या दूरियां

हो ज़िन्दगी या अंत

कहने को 

खामोशी अब लफ्ज़ चाहती है

.....मीनाक्षी सुकुमारन

          नोएडा