प्रीत का महीन धागा

प्रीत के महीन धागे में हर मन्नत बाँध आयी हूँ,

तुझे पाने की खातिर हर दहलीज लाँघ आयी हूँ।

मेरी लघु वृत्त की परिधि के तुम हो केन्द्रबिंदु ,

तेरी बाट जोहने को मैं सुबह साँझ आयी हूँ।

प्रीत के महीन धागे...


तुझे भी प्रीत है ,फिर क्यों बनता है अनजान,

मेरी उर वेदना का,क्यों तुझको नहीं है भान?

पलक पाँवड़े हूँ बिछायी आ जाओ इक बार,

प्रीत शाश्वत है मेरा सुरतिया दिखाओ घनश्याम।

दृग पलक पर तुझे बिठाकर श्याम आयी हूँ,

प्रीत के महीन धागे में हर मन्नत बाँध आयी हूँ...


किया है मैंने जीवन अपना तुझपे सपर्पित,

पुलकित रोम रोम मेरा, श्वांस है तुझपे अर्पित।

चितचोर तू रास रचाये हर गोपियों के संग ,

मैं तो हूँ बस नाम तेरा ही लेकर जीवित।

छोड़ दिया सुख वैभव, छोड़ सब आराम आयी हूँ,

प्रीत के महीन धागे में हर मन्नत बाँध आयी हूँ...


                      रीमा सिन्हा (लखनऊ)