2024 को लेकर बीजेपी और सपा दोनों मिशन मोड़ पर

यूपी से ही गुजरती है दिल्ली की सत्ता की राह

राजभर और शिवपाल की राह जुदा होने के बाद अखिलेश चले जिलों की ओर

बीजेपी गड़ाए है प्रदेश की 80 सीटों पर निगाह

लखनऊ। यूपी के रास्ते ही दिल्ली की सत्ता तक पहुँचने की राह गुजरती है। यूपी जीती तो दिल्ली की जीत पक्की मानी जाती है। इसलिए हर दल खासकर बीजेपी और समाजवादी पार्टी ही नही कांग्रेस और बसपा भी सियासी दिल्ली की कुर्सी पर अपना दबदबा खातिर अभी से गुणा भाग शुरू में जुट गई हैं। वैसे तो बीजेपी और सपा में यूपी मुख्य प्रतिद्वंद्वी माने जाते हैं। पार्लियामेंट इलेक्शन में करीब दो साल का समय बाकी है लेकिन अभी से यह दोनों दल मिशन मोड़ पर हैं। 

उत्तर प्रदेश की सियासत में सपा 111 विधायकों के  मुख्य विपक्षी दल है लेकिन 2024 की चुनावी राह उसके लिए काफी मुश्किल भरी है। शिवपाल यादव से लेकर ओम प्रकाश राजभर राह जुदा कर चुके हैं। आजमगढ़ और रामपुर सीटें हाथ से क्या गई ,सोच बदल गई। अपने भी जब टोकने लगे तो फिर खुद को बदलने में ही भलाई है, शायद सपा चीफ समझ गए हैं, इसीलिए फील्ड अब निकलने लगे हैं। अखिलेश यादव ने 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए चाल और अंदाज ही नहीं  मोहरे और दांव भी बदल दिए हैं। बीजेपी को मात देने की कवायद में अखिलेश यादव इन दिनों जुट गए हैं।

2024 के लोकसभा चुनाव के लिए भले ही करीब 20 महीनों का वक्त है, लेकिन सपा ने अपनी तैयारी शुरू कर दी है और अखिलेश यादव मिशन मोड में आ चुके हैं।  पहली बार बिना चुनाव के तीन दिनों तक लखनऊ से बाहर यूपी के दूसरे जिलों का दौरा करते रहे। जिलों में बीजेपी की खामियां गिनाई और अपनी सियासी ताकत की थाह भी ली।

बीजेपी के इसी फॉर्मूले पर सपा भी चल रही है। सपा ने अपने विधायक और सांसदों और पदाधिकारियों को जिले का प्रभार सौंप रखा है, जिनके कंधों पर पार्टी सदस्यता बढ़ाने से लेकर नगर निकाय चुनाव तक का भार है। पार्टी नेता अपने-अपने क्षेत्र में डेरा जमा रखे हैं और सपा का कुनबा बढ़ाने में जुटे हैं।कन्नौज और आजमगढ़ दौरे के बाद अखिलेश यादव तीन दिनों तक लखनऊ से बाहर पश्चिमी यूपी की सियासी थाह लेते नजर आए।

 पहले नोएडा फिर मथुरा होते हुए और उसके बाद औरैया पहुंचे, जहां वो चुनावी अंदाज में जनसभा संबोधित करते नजर आए। लखनऊ पहुंचते ही जातिगत जनगणना का मुद्दा उठाकर अपनी भविष्य की रणनीति भी साफ कर दी है। मंगलवार को श्भागीदार का संघर्षश् पुस्तक का विमोचन करते हुए कहा कि समाज में अभी भी दलित-वंचितों के साथ भेदभाव किया जा रहा है और जब भी हमारी सरकार आएगी हम जातिगत जनगणना जरूर करवाएंगे।अखिलेश यादव ने बीजेपी की सक्रियता को देखते हुए पश्चिमी यूपी में अपनी एक्टिवनेस बढ़ा दी है।  पश्चिमी यूपी के नोएडा और मथुरा को दौरा किया। 

इसके बाद लखनऊ वापसी से पहले औरैया पहुंचे। अखिलेश ने गांव, गरीब और युवाओं को साधने की कोशिश की। युवाओं से जुड़े मुद्दे को बार-बार दोहराते दिखे तो डॉ लोहिया के साथ अंबेडकर को भी जोड़ा और संविधान बचाने की दुहाई दी। इस तरह अपने सामाजिक समीकरण को बनाने की कोशिश की तो दलित वोटों को भी सियासी संदेश दिया। उधर बीजेपी तो हमेशा मिशन मोड़ में ही रहती है। एक के बाद दूसरा टास्क हाईकमान थमा देता है।

 सुनील बंसल की जगह धर्मपाल सिंह आ गए तो स्वतंत्र देव सिंह की जगह जाट लीडर भूपेंद्र चौधरी बैठा दिए गए हैं। जाट नाखुश थे किसान आंदोलन कर रहे थे,सरकार को कोस रहे थे। जाट अध्यक्ष बनाकर नाखुशी कम करने का भी काम कर दिया गया है।बीजेपी ने मिशन-2024 के लिए यूपी में सीएम योगी से लेकर केशव मौर्य और बृजेश पाठक सहित सभी दिग्गज नेताओं को जिम्मा सौंप रखा है। पार्टी के ये सभी नेता जिले-जिले दौरे करके माहौल बना रहे हैं। डिप्टी सीएम केशव मौर्य ने तो यूपी की सभी 80 सीटों पर भगवा लहराने का दावा कर दिया है। अखिलेश और आजम का किला जीत लिया ,अब सोनिया और मुलायम की सीटों पर निगाह है।

 उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की इन दिनों हो रही घोषणाये और शुरू हो रही परियोजनाएं प्रदेश की इकोनामी वन ट्रिलियन डॉलर बनाने और 2024 में फिर से मोदी की हुकूमत बनाने खातिर हैं। बूथ लेबल पर बीजेपी का फोकस सदैव रहता है। अन्य दल केवल चुनाव के वक्त मतदाता पर ध्यान देते हैं लेकिन बीजेपी के वर्कर मतदाता सूची सुधार से लेकर मतदाता से सम्पर्क के काम में लगे ही रहते हैं। असेम्बली से छूटे तो निकाय में जुट जाते हैं, मौका मिलते ही लोकसभा चुनाव की तैयारी में लग जाते हैं।