मोहन (मरहठा छंद )

मन मोहन प्यारे, काज सँवारे, करता प्रेम अपार |

बरसाना जाते,माखन खाते,देते मन उपहार ||

सुत जसुदा नंदन, कुल रघुनन्दन,बजावे मधुर तान |

मेरे जगदीश्वर, प्रेमिल गिरधर, सबकी रखते शान ||


मोहन अविनाशी,घट -घट वासी, बैठे बरगद छाँव |

बरसाना जाते, रास रचाते, रहते गोकुल गाँव ||

जब मुरली बाजे, गैया भागे, सुन के मधुरम तान |

मन गिरधर नागर, गुण के सागर,रखते सबका मान ||


सुन मोहन प्यारे, मन तुम वारे, सुनती मुरली तान |

चोरी तुम करते, दुखड़ा हरते,  गोपिन की तुम शान ||

सुन अंतर्यामी, जग के स्वामी, मेरे दीनानाथ |

नित राह निहारुँ, तुम्हें पुकारूँ, रख दो मुझ पर हाथ ||


लट घुँघराले, काम निराले, करते मेरे श्याम |

मन मोहन प्यारे, राह निहारे, नैन बसो निज धाम ||

जब बंशी बजती, होठों सजती, सुने सुरीला राग |

जब याद सताती, मन तड़पाती,बढ़ता है अनुराग ||

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कवयित्री

कल्पना भदौरिया "स्वप्निल "

लखनऊ

उत्तरप्रदेश