नौकर देवता के दिव्य दर्शन

आज बड़े साहब का नौकर नहीं आया था। शहर में नौकर की किल्लत जानवरों के बीच इंसानों को ढूँढ़ने जैसी हो गई है। अपनी हेकड़ी दिखाकर, नौकरी छोड़ देने की धमकी देने और पगार से पहले एडवांस खाकर गायब रहने वाले नौकर न दिखाई देने वाले भगवान की तरह होते हैं। 

जो नाम तो भजवा लेते हैं, लेकिन ऐन दर्शन देने की बारी आने पर पलटी मार जाते हैं। पहले मकान की तलाश पानी की उपलब्धता, अस्पताल और हरियाली देखकर की जाती थी, अब नौकर की उपलब्धता देखकर की जाती है। बड़े साहब के घरवाले एक पल के लिए सांस लिये बिना जी सकते हैं, लेकिन नौकर के बिना कतई नहीं। उनके घर में नौकर की कीमत का पता इसी बात से लगाया जा सकता है कि बड़े साहब की पत्नी आए दिन साहब और बच्चों को भला-बुरा सुना देती हैं, लेकिन अपने नौकर को कभी एक शब्द नहीं कहतीं। यह उनका नौकर के प्रति प्यार नहीं डर था।   

साहब घबराए हुए कभी हाथ की तो कभी दीवार की घड़ी देखते। गेट के आस-पास आभासी रेड कार्पेट बिछाए उसकी राह जोहते। साहब के दस्तखत के बिना गरीबों को अनाज वाली फाइल पिछले कुछ दिनों से मेज पर दम तोड़ रही थी, और इधर नौकर के बिना साहब। नौकर एक विशिष्ट प्राणी होता है। वह अपनी जीर्ण कुटिया में रहते हुए साहबों की बड़ी-बड़ी अट्टालिकाएँ हिलाने का माद्दा रखता है। ये खाते सब कुछ हैं, लेकिन अंग पर छटाक भर का मांस नहीं टिकता। टिके भी कैसे? 

टिकने के लिए तनावमुक्त रहना रहना पड़ता है और ये है कि साहबों को तनाव देने के लिए खुद तनाव में रहते हैं। नौकरों की ताकत का पता इसी बात से चल जाता है कि आज़ादी के बाद देश का जितना नुकसान नेताओं से नहीं हुआ उतना तो नौकरशाहों से हुआ है। नौकर नौकर न हुए अपने मर्जी के मालिक हो गए। पहले परिस्थितियाँ नौकरों को पैदा करत थीं। अब नौकर परिस्थितियों को पैदा करते हैं। वे हैं तो बड़े लोगों का उठना-बैठना है या फिर चलना-फिरना। खान-पान तनिको न भाय, नौकर बिन कुछ न सुहाय।

किसी जन्म के पुण्य रहे होंगे कि फाटक के पास नौकर देवता के दर्शन हो गए। वाश बैसिन में पड़े बर्तन जो थोड़ी देर मुँह फुलाए बैठे थे उसके आने की खबर मात्र से चहक उठे। पोंछा लगाने वाला पोंछूभाई फिनायल भाभी के साथ खुशी के मारे सुरताल कर रहा था। 

आज नौकर न आता तो घर में बर्तनों का वाश बैसिन से और पोंछूभाई का फिनायल भाभी के साथ जरूर तलाक हो जाता। तब इन दो छुट्टम-छुटाई के साथ साहब और मेमसाहब का तीसरा केस भी कोर्ट कचहरी में अपनी जान की दुहाई माँगता। वह तो भला हो उन नौकर देवताओं का जो समय से पहुँचकर कइयों के घर टूटने से बचाते हैं। नौकर नौकर न हुए घर को जोड़कर रखने वाले एमसील हो गए।        

डॉ. सुरेश कुमार मिश्रा ‘उरतृप्त’, मो. नं. 73 8657 8657