अब खुद में ही रम गयी

 बता तो दूं सारी बातें 

जता तो दूं सारी जज्बाते  

यशोधरा उर्मिला की भांति  

जागी हूं कितनी ही रातें|


ध्येय था सिद्धार्थ लक्ष्मण का 

मेरा भी भाव समर्पण का 

उनका तो  लक्ष्य हुआ पूरा 

पर आया ना पल अपने मिलन का| 


किसी और के होकर आए तुम 

मैं तुम में हो गई थी गुम 

अनुराग था मेरा मीरा सा 

इसलिए खुद को लिया है चुन| 


अब मैं खुद में ही रम  गयी  

कभी मचली कभी थम गयी 

अब भाते मुझको यह दर्पण 

रही सही सारी वहम गयी|


मैं अब खुद में ही रम गयी |

 

स्वरचित 

सविता सिंह मीरा 

झारखंड जमशेदपुर