आज़ाद भारत में गुलाम मानसिकता

एक  गुरु ने ही  शिष्य  के प्राण  हर   लिये   यहांँ,

पढ़ा लिखा  गुरु भी ऐसी मानसिकता रखता यहाँ,


मटकों  को  रखता है स्कूलों  में छिपाकर अपने,

सामंतवादी  सोच पर हर समय चलता है   यहांँ,


ख़ून की  जरूरत  हो, या  हो  जंग  जीवन  से,

तब जाति  का  भेदभाव  ना दिखता  है  यहाँ,


पशु मुत्र पीकर पवित्र हो जाती आत्मा जिनकी,

मटके को छूने से बालक के प्राण हरता है यहाँ,


है आतंकियों से ख़तरनाक मानसिकता जिनकी,

उनके बीच जी रहे जाति का दंश झेल कर  यहाँ,


ना जाने कितनी मौतें कर चुका और कितनी करनी है,

बचपन को भी अब तो चैन से नहीं जीने दे रहा यहाँ,


इन आतंकियों को कब सजा मिलेगी कहना मुश्किल है,

हर जगह  ठिकाने  बनाए  बैठा  इनका  समूह  यहाँ,


रामेश्वर दास भांन

करनाल हरियाणा