"पद और पैसा"

पद पैसा अब बड़ा हुआ है, दिखा रहे हैं रिश्तों में।

अहम भरा मानव के अंदर, टूट रहे हैं किस्तों में।।


क्या लेकर आये हो जग में, क्या लेकर तुम जाओगे।

समय निकलते देर नहीं है, पीछे तो पछताओगे।।

ज्ञात सभी अच्छे से सब कुछ, फिर भी देते हैं धोखा।

बाहर कितना उछल रहे हैं, अंदर से रहते खोखा।।


बड़े आदमी बनकर बैठे, मुँह में रखते जो ताला।

मानवता का पाठ पढ़ाते, ढोंगी जपते हैं माला।।

छुआछूत अरु भेदभाव का, पैदावार बढ़ाते हैं।

तुच्छ समझते हैं लोगों को, पैरों तले दबाते हैं।


कालचक्र भी घूम रहा है, ये तो वापस आता है।

जैसी करनी वैसी भरनी, जन जन को बतलाता है।।

नीमबीज तुम खुद हो डाले, आम कहाँ से पाओगे।

समय निकलते देर नहीं है, पीछे तो पछताओगे।।


पद पैसे का लालच छोड़ो, धरती पर रह जायेगा।

अच्छा कर्म सभी कर डालो, शिव से यही मिलायेगा।।

प्राण देह में जब तक है जी, तब तक ठोकर खाओगे।

अंत समय में मिले न पानी, तड़प तड़प मर जाओगे।।


रचनाकार

प्रिया देवांगन "प्रियू"

राजिम

जिला - गरियाबंद

छत्तीसगढ़

Priyadewangan1997@gmail.com