हर तरफ घोटाला है

हर तरफ घोटाला है

सत्य मौन है मुख पर,

बोल रहा जुबां से झूठ

पीकर चापलूसी का मधु प्याला है।


सिसकियों में लिपटा सत्य

खुद को साबित ना कर पाता,

झूठ, भरी महफिल में

सच बन बेहिसाब इतराता।


अजब दुनिया की

अजब लीला है,

मन भीतर से मैला

बाहर से रंगीला है।


काश भीतर से भी

बाहर जैसा होता इंसा,

तो फिर होता न

दर्द का ये जहां।


-वंदना अग्रवाल निराली (स्वरचित)

लखनऊ, उत्तर प्रदेश