जुमले हैं, जुमलों का क्या

वही पुराना जंगल और वही पुरानी शेर-खरगोश की कहानी। लेकिन इस बार ट्रिटमेंट नया है। खरगोश शेर के पास पहुँचा। उसने देखा वनराज शेर महाराज भूख के मारे आग बबूला हुए जा रहे हैं। खरगोश को लगा यही मौका है चलो शेर को मजा चखाते हैं। उसने शेर से झूठ कह दिया कि उसे रास्ते में एक और शेर मिल गया। वह उसे खाना चाहता था। लेकिन उसने पहले शेर का हवाला देकर जैसे-तैसे अपनी जान बचाई।  

शेर था तो पंचतंत्र का ही। खरगोश के साथ दूसरे शेर से मिलने से भला कैसे मना कर सकता था। शेर जंगल में उस कुएँ के पास पहुँचा जहाँ दूसरा शेर रहता था। खरगोश के कहने पर शेर ने कुएँ में झाँका। झाँकने पर उसे उसकी परछाई दिखायी दी। यह देखकर उसे गुस्सा नहीं आया। उसने अपने मन की बात कुएँ वाले शेर के सामने शुरु कर दी। 

उसने कहा – क्या तुम कुएँ से बाहर निकलना चाहते हो? क्या तुम इस जंगल का राजा बनना चाहते हो? क्या तुम कुएँ में ही रहकर भोजन पाना चाहते हो? क्या तुम ताली-थाली पीटकर अपना भाग्य बदलना चाहते हो? क्या तुम पंद्रह लाख पाकर बाहर निकलने के लिए उपाय खोजना चाहते हो? 

क्या तुम कुएँ में रहकर मौत का कुआँ खेल खेलना चाहते हो? क्या इसके लिए गाड़ी के साथ-साथ महंगा पेट्रोल सस्ते दाम पर पाना चाहते हो? यह सब सुन कुएँ के भीतर वाला शेर कुएँ के बाहर वाले शेर की तरह स्वीकृति की मुद्रा में सिर हिलाने लगा।

यह सब देख खरगोश का माथा ठनका। उसे लगा कि पंचतंत्र की घटना तो तंत्रपंच की घटना बन गयी। उसने शेर के सामने गिड़गिड़ाते हुए कहा – माई-बाप मैंने कुएँ वाले शेर के बारे में आपसे झूठ कहा था। वह तो आपकी परछाई मात्र थी। आपको इतने बड़े-बड़े वादे नहीं करना चाहिए था।

शेर ने कहा – जानता हूँ। हाँ, जहाँ तक बात वादों की है, तो वे वादे नहीं जुमले हैं। आज दुनिया जुमले सुनने की आदी हो चुकी है। इसलिए जब काम जुमलों से हो जाता हो तो वादे पूरा करने का क्या फायदा। इतना कहते हुए शेर ने खरगोश पर एक बड़ा सा पंजा मारा। जीएसटी की भांति एक ही हमले में सारा हिसाब बराबर। खरगोश पेट में और डकार बाहर। पंचतंत्र के तंत्रपंच से यही शिक्षा मिलती है कि मैंने जिस शेर के बारे में आपको बताया है, वह आपके आस-पास ही घूम रहा है। हो सके तो खुद को खरगोश बनने से बचा लें।   

डॉ. सुरेश कुमार मिश्रा ‘उरतृप्त’, मो. नं. 73 8657 8657